वृक्क या गुर्दे का जोड़ा एक मानव अंग हैं, जिनका प्रधान कार्य मूत्र उत्पादन (रक्त शोधन कर) करना है। गुर्दे बहुत से वर्टिब्रेट पशुओं में मिलते हैं। ये मूत्र-प्रणाली के अंग हैं। इनके द्वारा इलेक्त्रोलाइट, क्षार-अम्ल संतुलन और रक्तचाप का नियामन होता है।
किडनी को स्वस्थ रखने के लिए सात प्रभावी तरीके
नियमित रूप से एरोबिक व्यायाम और दैनिक शरीरिक गतिविधियाँ, रक्तचाप को सामान्य रखने में और रक्त शर्करा को नियंत्रण करने में मदद करती हैं। इस तरह शरीरिक गतिविधियाँ, मधुमेह और उच्च रक्तचाप के खतरे को कम कर देती है और इस प्रकार सी. के. डी. के जोखिम को कम किया जा सकता है।
ताजे फल और सब्जियों युक्त आहार लें। आहार में परिष्कृत खाघ पदार्थ, चीनी, वसा और मांस का सेवन घटाना चाहिए। वे लोग जिनकी उम्र 40 के ऊपर है, भोजन में कम नमक लें जिससे उच्च रक्तचाप और किडनी की पथरी के रोकथाम में मदद मिले।
स्वस्थ भोजन और नियमित व्यायाम के साथ अपने वजन का संतुलन बनाए रखें। यह मधुमेह, ह्रदय रोग और सी.के.डी. के साथ जुड़ी अन्य बीमारियों को रोकने में सहायक होता है।
धूम्रपान करने से एथीरोस्क्लेरोसिस होने की संभावना हो सकती है। यह किडनी में रक्त प्रवाह को कम कर देता है। जिससे किडनी की कार्य करने की क्षमता कम हो जाती है। अध्ययनों से यह भी पता चला हैं की धूम्रपान के कारण उन लोगों में जिनके अंतर्निहित किडनी की बीमारी है या होने वाली है, उनके किडनी की कार्यक्षमता में गिरावट तेजी से आती है।
लम्बे समय तक दर्द निवारक दवाई लेने से किडनी को नुकसान होने का भी भय रहता है। सामान्यतः ली जाने वाली दवाओं में दवाई जैसे आईब्यूप्रोफेन, डायक्लोफेनिक, नेपरोसिन, आदि किडनी को क्षति पहुँचाते हैं जिससे अंत में किडनी फेल्योर हो सकता है। अपने दर्द को नियंत्रित करने के लिए डॉक्टर से परामर्श लें और अपनी किडनी को किसी भी प्रकार से खतरे में न डालें।
रोज 3 लीटर से अधिक (10-12 गिलास) पानी पीएँ। पर्याप्त पानी पीने से, पेशाब पतला होता है एवं शरीर से कभी विषाक्त अपशिष्ट पदार्थों को निकलने और किडनी की पथरी को बनने से रोकने में सहायता मिलती है।
किडनी की बीमारियाँ अक्सर छुपी हुई एवं गंभीर होती है। अंतिम चरण पहुँचने तक इनमें किसी भी प्रकार का लक्षण नहीं दिखता है। किडनी की बीमारियों को रोकथाम और शीघ्र निदान के लिए सबसे शक्तिशाली पर प्रभावी उपाय है नियमित रूप से किडनी का चेक -अप कराना। पर अफ़सोस है की इस विधि का उपयोग ज्यादा नहीं होता है। किडनी का वार्षिक चेक -अप कराना, उच्च जोखिम वाले व्यक्ति के लिए बहुत जरुरी है, जो मधुमेह, उच्च रक्तचाप, मोटापे से ग्रस्त हैं और जिनके परिवार में किडनी की बीमारियों का इतिहास है। अगर आप अपनी किडनी से प्रेम करते हैं और अधिक महत्वपूर्ण है, तो 40 वर्ष की आयु के बाद नियमित रूप से अपने किडनी की जाँच करवाना मत भूलिये। किडनी की बीमारी और उसके निदान के लिए सबसे सरल विधि है की साल में एक बार रक्तचाप का माप लेना, खून में क्रीएटिनिन को मापना और पेशाब परीक्षण करवाना।
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किडनी रोगों के होने पर सावधानियाँ
किडनी रोगों की जानकारी तथा प्रारंभिक निदान
सतर्क रहें और किडनी की बीमारी के लक्षणों को अनदेखा न करें। चेहरे और पैरों में सूजन आना, खाने में अरुचि होना, उल्टी या उबकाई आना, खून में फीकापन होना, लम्बे समय से थकावट का एहसास होना, रात में कई बार पेशाब करने जाना, पेशाब में तकलीफ होना जैसे लक्षण किडनी रोगो की निशानी हो सकती हैं।ऐसी तकलीफ से पीड़ित व्यक्ति को तुरंत जाँच के लिए डॉक्टर के पास जाना चाहिए। उपरोक्त लक्षणों की अनुपस्थिति में अगर पेशाब में प्रोटीन जाता हो या खून में क्रीएटिनिन की मात्रा में वृध्दि हो, तो यह भी किडनी रोग होने का संकेत है। किडनी के रोग का प्रारंभिक अवस्था में निदान रोग के रोकथाम, नियंत्रण करने एवं ठीक करने में अत्यंत महत्वपूर्ण होता है।
डायाबिटीज के मरीजों के लिए जरुरी सावधानी
किडनी की बीमारी की रोकथाम सभी मधुमेह के रोगियों के लिए विशेष रूप से आवश्यक है। क्योकि दुनिया भर में सी. के. डी. और किडनी की विफलता का प्रमुख कारण मधुमेह है। डायालिसिस में आनेवाले क्रोनिक किडनी डिजीज के हर तीन मरीज में से एक मरीज किडनी फेल होने का कारण डायाबिटीज होता है। इस गंभीर समस्या को रोकने के लिए डायाबिटीज के मरीजों को हमेंशा दवाई एवं परहेज से डायाबिटीज नियंत्रण में रखना चाहिए।प्रत्येक मरीज को किडनी पर डायाबिटीज के असर की जल्द जानकारी के लिए हर तीन महीने में खून का दबाव एवं पेशाब में प्रोटीन की जाँच कराना जरुरी है। खून का दबाव बढ़ना, पेशाब में प्रोटीन का आना, शरीर में सूजन आना, खून में बार – बार शर्करा (ग्लूकोज) की मात्रा कम होना तथा डायाबिटीज के लिए इंसुलिन इंजेक्शन की मात्रा में कमी होना आदि डायाबिटीज के कारण किडनी खराब होने के संकेत होते है। किडनी की कार्यक्षमता का आंकलन करने के लिए हर साल कम से कम एक बार सीरम क्रीएटिनिन और का माप करवाना चाहिए। यदि मरीज को डायाबिटीज के कारण आँखो में तकलीफ की वजह से लेसर का उपचार कराना पड़े, तो ऐसे मरीजों की किडनी खराब होने की संभावना बहुत ज्यादा होती है। ऐसे मरीजों को किडनी की नियमित रूप से जाँच कराना अत्यंत जरूरी है। किडनी को खराब होने से बचाने के लिए डायाबिटीज के कारण किडनी पर असर का प्रारंभिक निदान जरूरी है। इसके लिए पेशाब में माइक्रोएल्ब्युमिनयूरिया की जाँच एकमात्र एवं सर्वश्रष्ठ जाँच है।सी. के. डी. को रोकने के लिए सभी मधुमेह रोगियों को खून और पेशाब में सावधानी से शक्कर की मात्रा नियंत्रित रखना चाहिए। जिसके लिए यदि आवश्यक हो तो डॉक्टर से परामर्श कर उचित दवाएँ लेना चाहिए। रक्तचाप को 130/80 से कम बनाए रखना चाहिए। इसके अलावा अपने आहार में प्रोटीन की मात्रा कम करें और वजन को नियंत्रण में रखें
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उच्च रक्तचाप वाले मरीजों के लिए आवश्यक सावधानियाँ
उच्च रक्तचाप क्रोनिक किडनी फेल्योर का एक महत्वपूर्ण कारण है। अधिकांश मरीजों में उच्च रक्तचाप के कोई लक्षण नहीं होने के कारण कई मरीज ब्लडप्रेशर की दवा अनियमित रूप से लेते हैं या बंद कर देते हैं। ऐसे मरीजों में लंबे समय तक खून का दबाव ऊँचा बने रहने के कारण किडनी खराब होने की आशंका रहती है। कुछ मरीज इलाज अधूरा छोड़े देते हैं क्योकि वे दवा के बिना अधिक सहज महसूस करते हैं, पर यह खतरनाक है। लंबे समय तक अनियंत्रित उच्च रक्तचाप, गंभीर समस्याएँ पैदा कर सकता है, जैसे – सी. के. डी., दिल का दौरा और स्ट्रोक।किडनी के रोगों को रोकने के लिए सभी उच्च रक्तचाप से ग्रस्त मरीजों को नियमित रूप से रक्तचाप की निर्धारित दवा लेनी चाहिए, नियमित रूप से रक्तचाप की जाँच करवानी चाहिए एवं उचित मात्रा में नमक लेना चाहिए। चिकित्सा का लक्ष्य है की रक्तचाप, 130/80 के बराबर या उससे कम रहे। इसलिए उच्च रक्तचाप वाले मरीजों को खून का दबाव नियंत्रण में रखना चाहिए और किडनी पर इसके प्रभाव के शीघ्र निदान के लिए साल में एक बार पेशाब की और खून में क्रीएटिनिन की जाँच करने की सलाह दी जाती है।
महिलाओं को अक्सर पीरियड्स से पहले सफेद पानी यानि व्हाइट डिस्चार्ज की समस्या का सामना करना पड़ता है। वैसे तो महिलाओं में सफेद पानी की समस्या होना एक सामान्य प्रक्रिया है, लेकिन सफेद पानी (व्हाइट डिस्चार्ज) का अत्याधिक स्राव होना किसी रोग या इंफेक्शन होने का संकेत भी देता है।
कामदेव चूर्ण : वीर्य विकार जैसे वीर्य का पतलापन, कमी, मलिनता आदि में यह विशेष प्रभावी आयुर्वेदिक चूर्ण है | यह शास्त्रोक्त चूर्ण धातु दुर्बलता, शीघ्रपतन एवं स्वप्नदोष जैसे रोगों में प्रमुखता से प्रयोग करवाया जाता है |
इसके सेवन से धातु (शुक्र) का पतलापन मिटता है एवं स्वप्नदोष एवं शीघ्रपतन जैसे रोग दूर होते है | आज इस आर्टिकल में हम कामदेव चूर्ण के घटक, बनाने की विधि एवं फायदों के बारे में आपको बताएँगे |
लगभग 5 आयुर्वेदिक जड़ी – बूटियां इसमें मिलायी जाती है
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कामदेव चूर्ण के घटक द्रव्य
इस चूर्ण में 5 आयुर्वेदिक जड़ी – बूटियों का समावेश होता है | निम्न जड़ी – बूटियां है –
- शुद्ध कौंच गिरी – 12 ग्राम
- सफ़ेद मुसली – 24 ग्राम
- मखाने की ठुड़ी (छिलका रहित) – 48 ग्राम
- तालमखाना – 48 ग्राम
- मिश्री – 60 ग्राम
कामदेव चूर्ण बनाने की विधि
सभी घटक द्रव्यों को ऊपर लिखित मात्रा में लेकर इन सभी का महीन चूर्ण कर लिया जाता है | कौंच को शुद्ध करके प्रयोग में लिया जाता है | कौंच को शुद्ध करने के लिए इसे गाय के दूध में उबाल कर छिलका उतार लिया जाता है |
इस प्रकार से कौंच शुद्ध हो जाता है | इन सभी जड़ी – बूटियों का महिन चूर्ण कर लिया जाता है एवं ऊपर लिखित मात्रा में सबको मिलाकर एयरटाइट बर्तन में रख लिया जाता है | इस प्रकार से कामदेव चूर्ण का निर्माण होता है |
कामदेव चूर्ण के फायदे
- इसके सेवन से धातु विकार, शीघ्रपतन एवं स्वप्नदोष मिट जाते है |
- इसके सेवन से वीर्य का पतलापन दूर होता है एवं वीर्य गाढ़ा बनता है |
- शुक्र को गाढ़ा करने वाली यह बहुत उत्तम निर्दोष दवा है |
- अगर स्त्री प्रसंग के समय जल्दी निकल जाता है तो यह चूर्ण आपके लिए अत्यंत लाभदायी साबित होता है |
- यह शरीर में धातुओं का पौषण का कार्य करता है |
- शारीरिक मजबूती प्रदान करता है |
- वीर्य के पतलेपन के कारण स्वप्नप्रमेह में इसका सेवन फायदा पहुंचता है |
- यौनेच्छा की कमी में भी अच्छे परिणाम देता है |
मात्रा एवं सेवन विधि
कामदेव चूर्ण का सेवन 3 से 5 ग्राम की मात्रा नित्य सुबह एवं शाम गाय के दूध के साथ करना चाहिए | वैसे इस आयुर्वेदिक दवा के कोई साइड इफेक्ट्स नहीं है फिर भी निर्देशित मात्रा से अधिक ग्रहण नहीं करना चाहिए |
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*1 – लिंग का , छोटा ,पतला होना या टेढ़ा होना ।*
*2 – हस्तमैथुन की वजह से लिंग का आकार छोटा रह जाना ।*
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आयुर्वेद में बताया गया है कि अगर किसी को ज्यादा कमजोरी लगे, तो एक गिलास दूध में एक चम्मच गाय का घी और मिश्री डालकर पी लें। गाय के घी से मानसिक शांति मिलती है, याददाश्त तेज होती है और एसिडिटी व कब्ज की शिकायत कम हो जाती है। इससे कॉलेस्ट्रॉल भी नहीं बढ़ता। याद रखें, महर्षि चरक ने गाय का घी कहा है, भैंस का नहीं। इसकी वजह यह है कि जो ताकत बैल में होती है, वह भैंस के पाड़े में नहीं होती।
आयुर्वेद में यह भी लिखा है कि गाय के घी से वीर्य बढ़ता है और शारीरिक व मानसिक ताकत में भी इजाफा होता है। इस घी को रसायन माना गया है। रसायन का मतलब, जो जवानी को बरकरार और बुढ़ापे को दूर रखे। गाय के घी से बेहतर कोई दूसरी चीज नहीं है। मेरे तजुबेर् में बाजार में शक्ति बढ़ाने वाली और थकान दूर करने वाली हर्बल दवाएं फायदा तो करती हैं,
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