उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा ने मीडिया से कहा कि यदि टिहरी बाँध न होता तो ऋषिकेश, हरिद्वार और पश्चिमी उत्तर प्रदेश जलप्लावित हो गए होते.
मुख्यमंत्री के इस बयान के बाद एक बार फिर से यह बहस छिड़ गई है कि बड़े बाँध उत्तराखण्ड के लिए लाभदायक हैं या हानिकारक ?
टिहरी के मूल निवासी और माकपा एवं अखिल भारतीय किसान महासभा के वरिष्ठ नेता बच्ची राम कौंसवाल कहते हैं “बड़े बाँधों से कुछ फ़ायदा हो सकता है लेकिन इससे नुकसान बहुत ज़्यादा होता है.”
केंद्रीय विश्वविद्यालय, गढ़वाल में आपदा प्रबंधन शोध अधिकारी डॉ. एसपी सती कहते हैं “इस बार के लिए यह सत्य है. लेकिन ये अर्धसत्य है. इसे हमेशा के लिए सच नहीं माना जा सकता.”
पलूशन कंट्रोल बोर्ड के पूर्व सदस्य सचिव सीवीएस नेगी कहते हैं “बाँध से लाभ भी है, हानि भी है. दोनों बाते हैं. अगर टिहरी बाँध नहीं होता तो हरिद्वार, ऋषिकेश साफ हो गए होते.
वरिष्ठ भू-वैज्ञानिक एवं जवाहरलाल नेहरू सेंटर फॉर एडवांस सांइटिफिक रिसर्च में मानद प्रोफेसर डॉ. वल्दिया से जब हमने इस संबंध में उनकी राय मांगी तो उन्होंने कहा कि मैं इस पर कोई राय व्यक्त नहीं करूँगा क्योंकि मेरे पास इस संबंध में कोई आंकड़ा नहीं है.
टिहरी नवपरियोजना प्रभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न देने की शर्त पर बताया कि टिहरी ने भागीरथी के पानी को संभाल लिया जिससे बाढ़ में काफी राहत मिली.
इस वरिष्ठ अधिकारी ने यह भी कहा कि “टिहरी के जलाशय की क्षमता बहुत ज़्यादा है. इसमें नदी का वह पानी जो सागर में जाकर बेकार हो जाता है. बाँध में उसे इकट्ठा कर लिया जाता है. जब सूखे का समय होता है तब हम अपने जलाशय के स्तर को नीचे करते हैं. इससे नीचे की नहरों को फायदा होता है.”
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डॉ. सती कहते हैं कि ये महज संयोग की बात है कि इस आपदा के समय टिहरी बाँध खाली था. आमतौर पर ऐसी घटनाएँ मानसून के बीच में होती हैं. तब बाँध का पानी नीचे की धारा में बहाना पड़ता है. जिससे और नुकसान होता है.
कौंसवाल ने कहा टिहरी बाँध की झील में अभी पानी कम था और मानसून अभी आया नहीं था. ये महज इत्तेफाक की बात है. अगर ये झील भरी होती और ये घटना मानसून आने के बाद होती तो ऋषिकेश और हरिद्वार का तटवर्ती क्षेत्र तबाह हो गए होते.
सीवीएस नेगी भी मानते हैं कि यदि कभी बाँध टूटा तो काफी नुकसान हो सकता है. हिमालय में बड़े बाँध का टेस्टेड मॉडल नहीं है.
सीवीएस नेगी कहते हैं, अगर हम ध्यान नहीं देते हैं तो आज जैसी त्रासदी हुई है वो फिर हो सकती है. आज नहीं होगी तो भविष्य में होगी. आज जो हुआ है वो पिछले बीसों साल के पर्यावरण क्षति का परिणाम है.
बिजली का सवाल
टिहरी नवपरियोजना प्रभाग के वरिष्ठ अधिकारी इस मुद्दे पर कहते हैं कि “2050 तक देश में थर्मल बिजली खत्म हो जाएगी. कोयला खत्म हो जाएगा. तब बस पानी से बिजली पैदा होगी.”
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“ परमाणु बिजली से जापान में जो हादसा हुआ है उसे देखते हुए परमाणु बिजली की बजाय पनबिजली का प्रयोग ही उचित है. अगर बाँध नहीं बनेगा, बिजली नहीं बनेगी तो देश को बड़ा नुकसान होगा.”
एसपी सती के अनुसार उत्तराखण्ड जो बिजली उत्पादन करता है उसका करीब 12 प्रतिशत हिस्सा ही उसे मिलता है. बाकी बिजली या तो केन्द्र को दी जाती है या एजेंसी/ठेकेदार को जाती है. उत्तराखंड के होने वाले नुकसान को देखा जाए तो यह फायदा काफी कम है.
इस मुद्दे पर पूछने पर कौंसवाल भी मानते हैं कि “बड़े बाँधों से बिजली मिल रही है. सिंचाई होती है. ऐसा नहीं है कि बड़े बाँधों से ही बड़े नुकसान होते हैं. लेकिन कुछ चीजें ऐसी हैं जिसके कारण हिमालय के क्षेत्र के मामले को लेकर हम हमेशा सशंकित रहते हैं.”
बड़े बाँधों के संबंध में सबसे ज़्यादा आलोचना इनके निर्माण से होने वाले व्यापक विस्थापन की होती है.
विस्थापन के संबंध में सरकार की नीति और नियत दोनों पर सवाल उठाए जाते रहे हैं.
इस संबंध में कौंसवाल कहते हैं कि 2007 में सरकार की जो पुनर्वास नीति बनी है उसके बाद तो किसी के पुनर्वास की गारंटी नहीं रही है. विस्थापितों को मुआवजे के नाम पर कुछ नकद धनराशि देकर उनकी जमीऩ, जायदाद इत्यादि ले लिया जाएगा.
टिहरी परियोजना से जुड़े वरिष्ठ अधिकारी भी मानते हैं कि विस्थापित लोगों का उचित पुनर्वास करना चाहिए. घर किसी का भी डूबे, उसके डूबने का दुःख बराबर ही होता है.
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डॉ. वाल्दिया कहते हैं कि जब बड़े बाँध बनेंगे तो उनसे वही समस्या होगी जो टिहरी के बनने के समय हुई थी. कहते हैं कि टिहरी के समय में लाखों की संख्या में लोग विस्थापित होंगे. जहाँ बड़े बाँध बनते हैं वहाँ बाँध की ऊपरी धारा की तरफ के कुछ किमी दूर तक नदी के किनारे जो बगड़ होते हैं वो डूब सकते हैं. वो डूबते भी हैं. हमें उनके पुनर्वास का पूरी व्यवस्था करनी चाहिए.
समाधान ?
बिजली के लिए बाँध की जरूरत है और इससे पर्यावरण को नुकसान भी पहुँच रहा है.
समाधान के बारे में पूछने पर कौंसवाल कहते हैं कि “1990 में सुंदर लाल बहुगुणा ने जब टिहरी बाँध का विरोध किया था उस समय यह तय हुआ था कि हमारे क्षेत्र में 100 मेगावाट से अधिक क्षमता का बाँध नहीं बनना चाहिए. लेकिन जोशीमठ में सिद्धप्रयाग बाँध है वो 440 मेगावाट की है. इसके अलावा दूसरी बहुत सी परियोजनाएँ 100 मेगावाट से ज़्यादा कोई 300 मेगावाट की है तो कोई 600 मेगावाट की बन रही हैं.”
जब हमने सीवीएस नेगी से समाधान के बारे में बात की तो उनका जवाब था, “रन ऑन दि रिवर डैम बनाना चाहिए. छोटे-छोटे बाँध बनाना चाहिए. मैं कहूँगा कि 20 मेगावाट से भी कम का बाँध बनना चाहिए. बड़े बाँध से समस्या आती है. विस्थापन की भी समस्या आती है. उचित इनवॉयरमेंट पॉलिसी बनानी चाहिए. पहले हर विभाग की, फिर पूरे स्टेट की.”
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