किसी की मृत्यु पर गरुण पुराण का पाठ क्यों जरूरी

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गरुड़ को कश्यप ऋषि का पुत्र और भगवान विष्णु का वाहन माना जाता है. एक बार गरुड़ ने भगवान विष्णु से, प्राणियों की मृत्यु, यमलोक यात्रा, नरक-योनियों तथा सद्गति के बारे में अनेक गूढ़ और रहस्ययुक्त प्रश्न पूछे. उस समय भगवान विष्णु ने गरुड़ की जिज्ञासा शांत करते हुये इन प्रश्नों का उत्तर दिया. गरुड़ के प्रश्न और भगवान विष्णु के उत्तर, इसी गरुड़ पुराण में संकलित किए गए हैं. सनातन धर्म में मृत्यु के बाद गरुड़ पुराण सुनने का विधान है. इस पुराण के उत्तर खंड में “प्रकल्प” का वर्णन है, इसका श्रवण या मनन करने से सद्गति की प्राप्ति होती है.

गरुड़ पुराण में जिस प्रकार के नरक और गतियों के बारे में बताया गया है, क्या वे सत्य हैं?

– गरुड़ पुराण में व्यक्ति के कर्मों के आधार पर दंड स्वरुप मिलने वाले विभिन्न नरकों के बारे में बताया गया है.

– गरुड़ पुराण में उल्लिखित नरक मन की विशेष अवस्थाओं के बारे में बताते हैं

– परन्तु ये प्रतीकात्मक हैं, वास्तविक नहीं .

– हालांकि ये बात जरूर है कि उसी तरह के परिणाम वास्तविक जीवन में भुगतने पड़ने हैं .

– और ये परिणाम वास्तविक तथा मानसिक होते हैं.

गरुड़ पुराण के अनुसार कौन सी चीजें व्यक्ति को सद्गति की ओर ले जाती हैं?

– तुलसी पत्र, और कुश का प्रयोग व्यक्ति को मुक्ति की ओर ले जाता है.

– संस्कारों को शुद्ध रखने से और भक्ति से व्यक्ति के दुष्कर्म के प्रभाव समाप्त होते हैं तथा व्यक्ति मुक्ति तक पहुंच जाता है.

– जल तथा दुग्ध का दान करना भी व्यक्ति के कल्याण में सहायक होता है.

– गुरु की कृपा से भी व्यक्ति के दंड शून्य होते हैं और व्यक्ति सद्गति की ओर जाता है.

क्या गरुड़ पुराण का पाठ केवल किसी की मृत्यु के समय ही करना चाहिए? क्या गरुड़ पुराण केवल भय पैदा नहीं करता ?

–  गरुड़ पुराण का पाठ अगर भाव समझकर किया जाय तो सर्वोत्तम होता है

– इसका पाठ कभी भी कर सकते हैं

– वैसे अमावस्या को इसका पाठ करना सबसे ज्यादा उत्तम होता है

– इसका भाव समझने पर यह बिलकुल भी भय पैदा नहीं करता

– गरुड़ पुराण के भाव को समझने के लिए इसके साथ गीता भी जरूर पढ़ें

भगवान शंकर और माता पार्वती जब अपने शयन कक्ष में विश्राम कर रहे थे तो गणेश जी को उन्होंने द्वार पर बैठा दिया. और कहा कि किसी को भी आने नहीं दे. माता पिता की आज्ञा का पालन कर रहे गणेश जी के पास तभी परशुराम जी आ गए और भगवान शंकर से मिलने के लिए कहा. लेकिन गणेश जी ने ऐसा करने से माना कर दिया. इस पर परशुराम जी को क्रोध आ गया और उन्होने अपने फरसे से उनका एक दांत तोड़ दिया. इसके बाद गणेश जी को एकदंत कहा जाने लगा.

ऋद्धि और सिद्धि दोनों ब्रह्माजी की मानस पुत्री थीं। दोनों पुत्रियों को लेकर ब्रह्माजी गणेशजी के पास पहुंचे और बोले की आपको इन्हे शिक्षा देनी है। गणेशजी शिक्षा देने के लिए तैयार हो गए। इसके बाद  ब्रह्मा जी उनके सामने ऋद्धि- सिद्धि को लेकर प्रकट हुए और बोलने लगे कि मुझे इनके लिए कोई योग्य वर नहीं मिल रहा है। आप इनसे विवाह कर लें। इस तरह भगवान गणेश का विवाह धूमधाम से ऋद्धि और सिद्धि के साथ हुआ।

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