रेस्टलेस लेग्स सिंड्रोम

रेस्टलेस लेग्स सिंड्रोम (आरएलएस) एक ऐसी स्थिति है, जसमें पैरों को इच्छा के अनुसार हिलाने में दिक्कत आती है। ऐसा पैरों में कुछ महसूस न होने के कारण होता है। यह समस्या आमतौर पर शाम या रात के समय तब ज्यादा प्रभावित करती है, जब आप बैठ या लेट रहे होते हैं। इस स्थिति में चलने में भी परेशानी होती है।

रेस्टलेस लेग्स सिंड्रोम को विलिस-एकबॉम डिजीज भी कहा जाता है। यह किसी भी उम्र में शुरू हो सकता है और आमतौर पर उम्र बढ़ने के साथ इसके लक्षण बिगड़ जाते हैं। इसमें नींद में बाधा आ सकती है, जिसकी वजह से रोजाना के कार्यों में दिक्कत आ सकती है।

खुद की देखभाल और जीवनशैली में बदलाव करके इस बीमारी के लक्षणों से राहत मिल सकती है। इसके अलावा दवाएं भी कई मामलों में मदद कर सकती हैं।

रेस्टलेस लेग्स सिंड्रोम के लक्षण

चूंकि इस बीमारी में नींद आने में परेशानी होती है, ऐसे में व्यक्ति दिनभर की भागदौड़ के बाद जब थक जाता है और नींद नहीं ले पाता है तो उसे सीखने, काम करने, एकाग्रता (ध्यान लगाना) और नियमित कार्यों और गतिविधियों को करने में परेशानी आती है।

अच्छी नींद या फिर पर्याप्त नींद न ले पाने के कारण उसके मिजाज में बदलाव आ सकता है जैसे चिड़चिड़ापन, अवसाद, प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर होना। इसके अलावा उसे कुछ शारीरिक व स्वास्थ्य समस्याएं भी हो सकती हैं।

आरएलएस से ग्रस्त व्यक्ति के पैरों (कभी-कभी भुजाओं) में एक अजीब सनसनी होती है और प्रभावित हिस्से को हिलाने में दिक्कत आती है। इस दौरान निम्न स्थिति महसूस हो सकती है :

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  • दर्द
  • जलन
  • बहुत धीमे और छोटे कदम लेना (जैसे रेंगना)
  • धीरे-धीरे बढ़ना
  • बिजली के झटके की तरह लगना
  • खुजली
  • कराहने (दर्द की वजह से आवाज निकलना)
  • झुनझुनी लगना

ये परेशानियां तब होती हैं जब व्यक्ति किसी भी समय आराम करता है। हालांकि, ये लक्षण अक्सर शाम और रात के समय में खराब हो जाते हैं और सुबह के समय थोड़ी देर के लिए राहत मिल सकती है।

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कभी-कभी इस झुनझुनी को समझाना मुश्किल हो जाता है, लेकिन इस बीमारी से ग्रस्त लोगों पर किए गए एक सर्वे के मुताबिक, उन्होंने बताया कि इस दौरान उन्हें मांसपेशियों में ऐंठन या सुन्न होने जैसी समस्या नहीं हुई। वे लोग अपने पैरों को लगातार मूव करने की कोशिश करते हैं।

इस बीमारी के लक्षणों की गंभीरता में उतार-चढ़ाव आना आम बात है, कभी-कभी यह लक्षण समय के साथ गायब हो जाते हैं, फिर वापस आ जाते हैं।

रेस्टलेस लेग्स सिंड्रोम के कारण

इस बीमारी के कारणों के बारे में उचित जानकारी उपलब्ध नहीं है, लेकिन शोधकर्ताओं को लगता है कि यह हालत ब्रेन केमिकल रासायनिक डोपामाइन (एक तरह का हार्मोन) के असंतुलन के कारण हो सकती है, जो मांसपेशियों की गति को नियंत्रित करने में अहम भूमिका निभाती है।

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  • आनुवंशिक
    कभी-कभी यह बीमारी परिवारों के सदस्यों में फैलती है। आरएलएस से ग्रस्त 40 प्रतिशत से अधिक लोगों में कारण फैमिली हिस्ट्री पाया गया है। इसके लक्षण आमतौर पर 40 साल की उम्र से दिखने शुरू हो जाते हैं। शोधकर्ताओं ने शरीर में कुछ ऐसे हिस्सों की पहचान की है, जहां आरएलएस के लिए जीन मौजूद हो सकते हैं।
  • गर्भावस्था
    गर्भावस्था या हार्मोनल परिवर्तन की वजह से रेस्टलेस लेग्स सिंड्रोम के संकेत और लक्षण अस्थायी रूप से खराब हो सकते हैं। कुछ महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान इस बीमारी के होने का खतरा अधिक रहता है। गर्भावस्था के अंतिम तिमाही के दौरान यह खतरा और भी अधिक बढ़ जाता है। हालांकि, यह लक्षण आमतौर पर डिलीवरी के बाद गायब हो जाते हैं।
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रेस्टलेस लेग्स सिंड्रोम का इलाज

दवा के जरिए आरएलएस को ठीक नहीं तो नहीं किया जा सकता है, लेकिन इसके लक्षणों को नियंत्रित किया जा सकता है :

  • आयरन की कमी : जिनमें आयरन की कमी होती है, उन्हें इस कमी को दूर करने वाली दवाइयों के साथ सप्लीमेंट लेने की जरूरत पड़ती है। ऐसा करने से लक्षणों को बेहतर बनाने में मदद मिल सकती है। हालांकि, केवल डॉक्टरी देखरेख में ही आयरन सप्लीमेंट लेनी चाहिए, क्योंकि वह आपके खून में आयरन की जांच के बाद खुराक के बारे में बता सकते हैं।
  • दर्द निवारक : इबुप्रोफेन, दर्द, बुखार और सूजन को कम करने वाली दवाएं (एनएसएआईडी), हल्के लक्षणों में मदद कर सकती है।
  • मिर्गी रोधी : ये दर्द, मांसपेशियों में ऐंठन, न्यूरोपैथी व अन्य लक्षणों के इलाज में फायदेमंद हो सकती है।

इस बीमारी से ग्रस्त लोग अक्सर उपचार के लिए डॉक्टर के पास जाने से कतराते हैं, उन्हें लगता है कि उनकी इस समस्या को गंभीरता से नहीं लिया जाएगा। लेकिन बता दें कि उपचार न करवाने से नींद में बाधा आने की समस्या बढ़ सकती है, जिसकी वजह से जीवन की गुणवत्ता प्रभावित हो सकती है। इसलिए अपने डॉक्टर को इस स्थिति के बारे में बताएं, ताकि जल्द आरएलएस के लक्षणों से निजात पाई जा सके।

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अश्वगंधा पुरुषो के लिए तो लाभदायक होता ही है साथ ही महिलाओ के लिए भी बहुत फायदेमंद होता है। इसके पोधों के जड़ो में एंटीबाक्टेरियाल और एंटीफ़ंगल होता है जिससे ज़्यादातर इन्फ़ैकशन को ख़तम करने मे असरदर माना जाता है।महिलाओ मे इन्फ़ैकशन होना आम बात है।
 गर्भाशय के सूजन को भी कम करने में ये आयुर्वेद हेर्ब माना जाता है। जिन महिलाओ की योनि में से सफ़ेद चिपचिपा प्रदार्थ निकलता है उन्हे भी अश्वगंधा खाने से बहुत फाइदा मिलता है।
(डॉ. नुस्खे )
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