तीन सालों में एक बार लगने वाले पुरुषोत्तम मास में पड़ने वाली एकादशी को पद्मिनी एकादशी कहते हैं। पुरुषोत्तम मास भगवान विष्णु की आराधना का माह माना जाता है। तीन साल में एक बार पड़ने वाली इस एकादशी का महत्व और भी बढ़ जाता है।
पद्मिनी एकादशी मुहूर्त – एकादशी तिथि प्रारंभ: 27 सितंबर, 06:02 मिनट पर
एकादशी तिथि समाप्त: 28 सितंबर, 07.50 मिनट पर
पद्मिनी एकादशी पारण मुहूर्त: 06:10:41 से 08:26:09 तक
ऐसी मान्यता है कि, पद्मिनी एकादशी का व्रत करने वाले श्रद्धालुओं को सालभर की सभी एकादशी व्रतों के बराबर फल मिल जाता है साथ ही व्रती को विष्णु लोक की प्राप्ति होती है। श्रद्धालु इस व्रत को 27 सितंबर रविवार को रखेंगे।
ऐसे करें पूजन-अर्चन – पंडित मनीष मोहन के अनुसार, सुबह ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नान आदि कर सूर्यदेव को अर्घ्य दें। साफ पीले रंग का वस्त्र धारण करें और भगवान विष्णु की पूजा शुरू कर दें। सबसे पहले पूजा स्थान में भगवान की तस्वीर स्थापित करें, फिर हाथ में जल लेकर व्रत का संकल्प लें। धूप-दीप जलाएं और विधिवत विष्णुजी की पूजा करें। रात को सोएं नहीं, बल्कि भजन-कीर्तन करें। द्वादशी तिथि के दिन व्रत का पूरे विधि-विधान से पारण करें।
पद्मिनी एकादशी व्रत का महात्म्य – ज्योतिर्विद पंडित नरेंद्र उपाध्याय के अनुसार, पद्मिनी एकादशी भगवान विष्णु को प्रिय है। पुराणों के अनुसार जो व्यक्ति पद्मिनी एकादशी व्रत का पालन सच्चे मन से करता है उसे विष्णु लोक की प्राप्ति होती है। इस व्रत को करने से व्यक्ति हर प्रकार की तपस्या, यज्ञ और व्रत आदि से मिलने वाले फल के समान फल प्राप्त करता है। ऐसी मान्यता है कि, सर्वप्रथम भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को पुरुषोत्तमी एकादशी के व्रत की कथा सुनाकर इसके महात्म्य से अवगत करवाया था।
क्यों है खास – मलमास के महीने को पुरुषोत्तम मास भी कहा जाता है. यह महीना भगवान विष्णु को समर्पित है. इस महीने में भगवान विष्णु की विधिवत पूजा करने से ना केवल मनचाही इच्छाएं पूरी होती हैं, बल्कि जाने-अनजाने में किए गए पाप भी नष्ट हो जाते हैं. इसी महीने में पद्मिनी एकादशी का आना इसे और भी शुभ बना देता है. पद्मिनी एकादशी आमतौर पर 3 साल में एक बार आती है इसलिए इसका खास महत्व है.
धार्मिक ग्रंथों में ऐसा बताया गया है कि पद्मिनी एकादशी के महत्व के बारे में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को बताया था. मलमास में अनेक पुण्यों को देने वाली एकादशी का नाम पद्मिनी है. इसका व्रत करने पर मनुष्य कीर्ति प्राप्त करके बैकुंठ को जाता है, जो मनुष्यों के लिए भी दुर्लभ है.
इस दिन जरूरतमंदों को तिल, वस्त्र, धन, फल और मिठाई आदि का दान करना चाहिए. जो लोग व्रत नहीं भी करते हों वह भी इन चीजों का दान कर सकते हैं. दान करने से भी व्रत का फल प्राप्त हो जाता है.
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