आयुर्वेद में मुलेठी को यष्टिमधु भी कहते हैं। यह भारतीय औषधियों, घरेलू उपचार, लोक औषधि और आयुर्वेद में प्रयुक्त होने वाली एक महत्वपूर्ण जड़ी बूटी है। मुलेठी अति अम्लता, व्रण, सामान्य दुर्बलता, जोड़ों के दर्द और कुछ अन्य रोगों में प्रयुक्त की जाती है।
इसके औषधीय गुणों के कारण यह इन रोगों में लाभकारी होती है। यह एक अच्छी दाह नाशक और पीड़ाहर औषधि है। यह अम्लत्वनाशक और कामोद्दीपक के रूप में भी कार्य करती है।
हाथ-पैर सुन्न हो जाना
सोंठ और लहसुन की एक-एक 10 ग्राम गाठ में पानी डालकर पीस लें तथा प्रभावित अंग पर इसका लेप करें। सुबह खाली पेट जरा-सी सोंठ और लहसुन की दो कली प्रतिदिन 10 दिनों तक चबाएं।
मसूढ़े फूलना (मसूढ़ों की सूजन होना )-
मुलेठी के फायदे एवं उपयोग
मुलेठी के मुख्य लाभकारी प्रभाव पाचन तंत्र और श्वसन प्रणाली पर होते हैं। यह पेट के लक्षण जैसे सीने में जलन, पेट में जलन, पाचक और ग्रहणी व्रण, पेट दर्द, उर्ध्वगत पित्त और जीर्ण जठरशोथ से मुक्त होने में सहायता करता है।
मुलेठी में ग्लाईसीरहीजिन होता है, जो स्वाद में मीठा होता है और जठरांत्र संबंधी मार्ग की सूजन को कम कर देता है। यह पाचन तंत्र से संबंधित निम्नलिखित बीमारियों में लाभदायक होता है।
मसूढ़े फूलना (मसूढ़ों की सूजन होना )-
मसूढ़े फूल जाएं तो तीन ग्राम सोंठ को दिन में एक बार पानी के साथ फांकें। इससे दांत का दर्द ठीक हो जाता है।
मुलेठी एक अम्लत्वनाशक के रूप में काम करता है और पेट में मुक्त और कुल एचसीएल के स्तर को कम कर देता है। यह पाचक श्लेष्म में अम्लीय जलन को कम करता है। यह तीव्र और जीर्ण जठरशोथ में प्रभावी है।
ग्रहणी संबंधी व्रण में, यष्टिमधु में उपचारात्मक गुण होते है। यह गैस्ट्रिक श्लेष्म को ठीक करता है और व्रणोत्पत्ति को कम करता है।मुलेठी छाले युक्त व्रण में एक दिन के भीतर 50 से 75% तक राहत प्रदान कर सकती है और तीन दिनों के भीतर यह इसका पूरी तरह से उपचार कर सकती है।नासूर दर्द और मृदुता के लक्षणों वाला एक सामान्य प्रकार का मुंह का व्रण होता है। ये लालिमा से घिरे हुए सफ़ेद या पीले रंग के होते हैं। यष्टिमधु का पानी या चाय, दर्द और मृदुता को कम कर देता है। इसके पानी से गरारे करना नासूर के घावों के आकार को कम करने में प्रभावी है।मुलेठी में ग्लेब्रिडीन यौगिक होता है, जो बृहदांत्र संबंधी सूजन को कम कर देता है। यह श्लेष्म के सूजन वाले क्षेत्र में उपचार की प्रक्रिया को तेज कर सकता है और आंतों के श्लेष्म के अल्सर को रोक सकता है।आयुर्वेद में, सव्रण बृहदांत्रशोथ के उपचार में इसका उपयोग आमलकी, वंशलोचन और गिलोय सत्व के साथ किया जाता है।मुलेठी मद्य रहित वसा यकृत रोग में लाभ देती है। यह बढ़े हुए यकृत किण्वक को कम कर देती है।
मुलेठी गले में खराश, जलन, खाँसी और ब्रोंकाइटिस (Bronchitis) के उपचार में उपयोगी है।यष्टिमधु में कफोत्सारक गुण होते हैं। यह फेफड़ों में जमे मोटे पीले रंग के बलगम का भी खांसी के साथ निकलना आसान बनाता है।
आयुर्वेद में, इसका प्रयोग निम्न स्थितियों में किया जाता है:
मुलेठी श्वसन नलियों की सूजन को कम करती है और श्वसन तंत्र को आराम पहुंचती है, इस प्रकार यह ब्रोन्काइटिस में मदद करती है। दाह नाशक गुणों के कारण, यह ब्रोंकाइटिस, दमा जैसे कई सूजन वाले रोगों में प्रभावी है। अध्ययन के अनुसार, यह एलर्जी अस्थमा (प्रत्यूर्जतात्मक दमा) में भी लाभदायक हो सकती है।
मुलेठी के पेस्ट, तेल या जेल का उपयोग करने से खुजली के साथ साथ सूजन और खाज में भी लाभ मिलता है। खुजली के उपचार में प्रयुक्त कुछ हर्बल क्रीम और जेल में मुलेठी सत्त्व होता है। यह खुजली, लालिमा और सूजन को कम कर देता है।
आयुर्वेद में, मुलेठी का उपयोग बाल गिरने से रोकने के लिए किया जाता है।
मुलेठी स्थायी थकावट के लक्षण वाले रोगियों की सहायता कर सकती है। यह क्रिया ताकत देने की और प्रतिउपचायक गतिविधियों के कारण हो सकती है।मुलेठी का उपयोग पौरुष ग्रंथि अतिवृद्धि या पौरुष ग्रंथि कैंसर में किया जाता है, लेकिन अभी तक इस विषय पर इसके संबंधित अध्ययन उपलब्ध नहीं हैं।
मुलेठी मात्रा और सेवन विधि
आयुर्वेदिक विज्ञान गर्भावस्था में अंतर्गर्भाशयी वृद्धि अवरोध के मामले में मुलेठी का उपयोग करने की सलाह देता है। भारत में ऐसे मामलों में इसका चिकित्सीय रूप से उपयोग 2000 वर्षों से किया जा रहा है।हालांकि, आधुनिक विज्ञान गर्भावस्था के समय इसके प्रयोग को प्रतिबंधित करता है। गर्भावस्था में मुलेठी उच्च खुराक में असुरक्षित है।
स्तनपान कराते समय प्रतिदिन 6 ग्राम से अधिक मात्रा में मुलेठी का उपयोग करने से बचें। यष्टिमधु उत्पादों का नियमित सेवन वर्जित है।मुलेठी उच्च रक्तचाप वाली औषधियों के साथ क्रिया करके उनका संकेंद्रण कम कर देती है।कुछ शोध अध्ययनों ने यह निष्कर्ष निकाला है कि मुलेठी रक्त शर्करा के स्तर को प्रभावित कर सकती है। कई अध्ययनों ने सुझाव दिया है कि यह रक्त शर्करा के स्तर को कम करती है, अतः मधुमेह नाशक चिकित्सीय खुराक को समायोजित करने के लिए रक्त शर्करा के स्तर की नियमित जांच आवश्यक हो जाती है।
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पुरुषों की कमजोरी मिटाने के देसी तरीके
मूसली काली और सफेद दो तरह की होती है। सफेद मूसली काली मूसली से अधिक गुणकारी होती है और वीर्य को गाढ़ा करने वाली होती है। मूसली का 3-3 ग्राम चूर्ण सुबह और शाम दूध के साथ लेने से वीर्य गाढ़ा होता है और शरीर में काम-उत्तेजना की वृद्धि होती है।
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पुरुषों के लिए सफेद मूसली बहुत ही लाभकारी होती है। नोरोगी सफेद मूसली कैप्सूल के सेवन से पुरुषों की शारीरिक कमज़ोरी दूर होती है। नोरोगी सफेद मूसली कैप्सूल को Chlorophytum (क्लोरोफ़ायटम) कहा जाता है। यह एक प्रकार का पौधा है, जिसके अंदर छोटे सफ़ेद फूल होते है। यह विशेष रूप से उन पुरुषों के लिए लाभदायक होती है जिनके वीर्य में शुक्राणुओं की संख्या कम हो और कामेच्छा कम होती है।
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