संतान प्राप्ति की चाह रखने वाले को पुत्रदा एकादशी का व्रत जरूर रखना चाहिए

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पुत्रदा एकादशी का व्रत हर साल श्रावण माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को रखा जाता है। इस दिन विधि-विधान से भगवान श्रीहरि की पूजा की जाती है। मान्यता है कि पुत्रदा एकादशी का व्रत संतान प्राप्ति और उससे जुड़ी समस्याओं के निपटारे या उनके कल्याण के लिए रखा जाता है। इस साल यह व्रत 30 जुलाई को पड़ा है। ज्योतिषाचार्यों के मुताबिक, पुत्रदा एकादशी के विधि-विधान से पूजा करने से धन-संपदा में बरकत में भी बरकत होती है। पुत्रदा एकादशी को निर्जला या फलादार दोनों तरह से रखा जा सकता है।

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, एकादशी के दिन चावल का सेवन नहीं करना चाहिए। इसके अलावा एकादशी के दिन भगवान का नाम जपना चाहिए। गुस्सा और झगड़े से दूर रहना चाहिए। इसके अलावा मांस-मदिरा का सेवन करने में भी मनाही है।

एकादशी तिथि का आरंभ- 30 जुलाई को सुबह 1 बजकर 16 मिनट पर
एकादशी समाप्ति- 30 जुलाई को रात 11:49 बजे समाप्त होगी।
व्रत पारण का समय- 31 जुलाई की सुबह 05:42 बजे-08:24 बजे तक।

पुत्रदा एकादशी की कथा

धार्मिक कथाओं के अनुसार, भद्रावती राज्य में सुकेतुमान नाम का राजा राज्य करता था। उसकी पत्नी शैव्या थी। राजा के पास सबकुछ था, सिर्फ संतान नहीं थी। ऐसे में राजा और रानी उदास और चिंतित रहा करते थे। राजा के मन में पिंडदान की चिंता सताने लगी। ऐसे में एक दिन राजा ने दुखी होकर अपने प्राण लेने का मन बना लिया, हालांकि पाप के डर से उसने यह विचार त्याग दिया। राजा का एक दिन मन राजपाठ में नहीं लग रहा था, जिसके कारण वह जंगल की ओर चला गया।

राजा को जंगल में पक्षी और जानवर दिखाई दिए। राजा के मन में बुरे विचार आने लगे। इसके बाद राजा दुखी होकर एक तालाब किनारे बैठ गए। तालाब के किनारे ऋषि मुनियों के आश्रम बने हुए थे। राजा आश्रम में गए और ऋषि मुनि राजा को देखकर प्रसन्न हुए। उन्होंने कहा कि राजन आप अपनी इच्छा बताए। राजा ने अपने मन की चिंता मुनियों को बताई। राजा की चिंता सुनकर मुनि ने कहा कि एक पुत्रदा एकादशी है। मुनियों ने राजा को पुत्रदा एकादशी का व्रत रखने को कहा। राजा वे उसी दिन से इस व्रत को रखा और द्वादशी को इसका विधि-विधान से पारण किया। इसके फल स्वरूप रानी ने कुछ दिनों बाद गर्भ धारण किया और नौ माह बाद राजा को पुत्र की प्राप्ति हुई।

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