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अंडमान की सिर्फ सेंटिनलीज जनजाति ही नहीं बल्कि कई ऐसी जनजातियां हैं जिनका बाहरी दुनिया से ज्यादा लेना-देना नहीं है और इन जनजातियों को असुरक्षित घोषित किया गया है.
भारत एक ऐसा देश है जहां मित्रता को बहुत तवज्जो दी जाती है और ‘अतिथि देवो भव:’ की नीति अपनाई जाती है. हालांकि, ये हिंदुस्तान के हर कोने में मिले ये जरूरी नहीं है. देश के कई हिस्सों में ऐसे लोग रहते हैं जिनके पास जाना खतरनाक साबित हो सकता है. हाल ही में एक अमेरिकी मिशनरी को अंडमान – निकोबार द्वीप समूह में रहने वाली एक ऐसी जनजाती के लोगों ने मार डाला जिन्हें बाकी दुनिया से कोई मतलब नहीं है. दुनिया की सबसे खतरनाक जगहों में से एक भारत में है जिसे सेंटिनल द्वीप कहा जाता है जहां अभी भी आदिवासी आदीमानव की तरह ही रहते हैं. ये वो लोग हैं जिनसे किसी भी तरह से कॉन्टैक्ट नहीं किया जा सकता.
अमेरिकी टूरिस्ट जॉन एलन चाऊ गैरकानूनी तरीके से इनके पास गया और दोस्ती करने की कोशिश की. जॉन को लगता था कि वो इन सेंटिनलीज आदिवासियों को जीसस के बारे में बताएगा और उन्हें ईसाई धर्म की ओर आकर्षित करेगा. जॉन ने मछुआरों को 25000 रुपए भी दिए ताकी वो गैरकानूनी तरह से जॉन को आदिवासियों के पास तक ले जा सके. मछुआरा थोड़ी दूर पर जाकर रुक गया और वहां से जॉन अपनी कयाक के जरिए द्वीप तक पहुंचा. पहले दिन तो वो वापस आ गया, लेकिन दूसरे दिन फिर जॉन ने यही किया और इस बार वो वापस नहीं आया. मछुआरे ने द्वीप पर देखा कि जॉन की लाश को आदिवासी घसीटते हुए ले जा रहे हैं.
अंडमान की सिर्फ सेंटिनलीज जनजाति ही नहीं बल्कि कई ऐसी जनजातियां हैं जिनका बाहरी दुनिया से ज्यादा लेना-देना नहीं है और इन जनजातियों को असुरक्षित घोषित किया गया है.
सेंटिनलीज आदिवासियों की असल संख्या क्या है इसके बारे में भी नहीं बताया जा सकता. वहां तक अभी कोई नहीं पहुंच पाया है और उन्हें 50 से 150 के बीच में बताया जाता है. सेंटिनलीज अकेली ऐसी भारतीय जनजाती नहीं है जो खतरे में है या फिर उनके पास जाना खतरे को न्योता देना है. अकेले अंडमान में ही पांच संरक्षित जनजातियां रहती हैं.
1. सेंटिनलीज जनजाति-
इस जनजाती के बारे में तो अभी तक आप समझ ही गए होंगे कि ये कितनी खतरनाक है और इनके पास बाहरी लोग नहीं जा सकते हैं. सूनामी के वक्त भारतीय कोस्ट गार्ड्स ने इस आबादी के पास खाने के पैकेट भेजने की कोशिश की थी, लेकिन यहां मौजूद आदिवासियों ने उड़ते हुए हेलिकॉप्टर पर भालों और तीरों से हमला कर दिया था. भारतीय कानून के हिसाब से इस जनजाति के द्वीप पर कोई भी इंसान नहीं जा सकता है.
इनसे जुड़ने की कोशिश कई बार की गई, लेकिन इस जनजाति के लिए आम लोगों से जुड़ना सही नहीं है और इनके द्वीप में जाने वाले किसी भी इंसान को ये मार डालते हैं. सेंटिनलीज अब दुनिया की उन गिनी चुनी जनजातियों में से एक है जिन्हें बाहरी दुनिया से कोई मतलब नहीं और जो असल में काफी खतरनाक हैं.
2. जरावा जनजाति-
जरावा जनजाति अब थोड़ा सा बाहरी दुनिया से घुलने मिलने लगी है. ये जनजाति भी अंडमान के दक्षिणी हिस्से में रहती है और इनकी आबादी कुछ 250 से 400 के बीच है. टूरिस्ट इनके पास आते हैं. इन्हें खाने के लिए कुछ चीजें देते हैं और यहां महिलाओं से डांस करने को कहते हैं.
इस जनजाति को खतरनाक माना जाता है पहले क्योंकि ये लोग खाने के लिए अन्य लोगों पर हमला भी कर देते थे, लेकिन अब ये नए लोगों को देखने और उनके साथ समय बिताने के आदी हो गए हैं.
ये जनजाति असल में मॉर्डनाइजेशन का शिकार हो गई है जहां भले ही टूरिस्ट इन्हें ह्यूमन सफारी या ह्यूमन जू की तरह देखते हों, लेकिन इन्हें संरक्षण नहीं दिया जाता और बाकी लोग इन्हें अपनाते नहीं हैं. ये जनजाति भी पहले काफी खतरनाक मानी जाती थी, लेकिन जैसे ही सरकार ने इनके इलाके में रोड बना दी वैसे ही इन्हें बाहर आने का मौका मिल गया और लोगों से जुड़ने का भी. पर दिक्कत ये है कि इन लोगों को सिर्फ और सिर्फ उपहास का केंद्र भर माना जाता है.
3. ओंगी/ओंग जनजाति-
ये भी अंडमान की जनजाति है और इस जनजाति को सरकार द्वारा संरक्षण प्राप्त है और ये जनजाति लिटिल अंडमान में रहते हैं. इस जनजाति को काफी समय से संरक्षण प्राप्त है और इसलिए राशन से लेकर स्वास्थ्य सेवाओं तक सब कुछ मिलता है और ये जनजाति आसानी से बाहर की दुनिया के लोगों से बात-चीत कर सकती है. पोर्ट ब्लेयर से लगभग 145 किलोमीटर दूर लिटिल अंडमान का साउथ बे और डिगॉन्ग क्री इलाका ओंगियों के लिए सुरक्षित है और यहां आम लोगों का जाना मना है. यहां जाने के लिए लोगों को सरकार से अनुमति लेनी होती है और ये भी आसानी से नहीं मिलती. ये जनजाति अक्सर शिकार कर अपना पालन करती है.
ओंगियों के इलाके में जाने की इजाजत आसानी से नहीं मिलती है और ये जनजाति के करीब जाने वाले लोग भी बेहद स्किल्ड होते हैं. इनकी आबादी अब 100 से 150 के बीच रह गई है.
4. जंगिल जनजाति-
जंगिल लोगों को रटलैंड जरावा भी कहा जाता था और ये अंडमान के कुछ बेहद घने जंगलों वाले इलाके में रहा करते थे. Rutland द्वीप में ये खास तौर पर बसते थे और इसी लिए उन्हें रटलैंड जरावा कहा जाता था. ये अपने पड़ोसी जरावा जनजाति के लोगों से खास तौर पर जुड़े हुए थे. सिर्फ कुछ ही समय में इन लोगों से बाहरी लोगों का कॉन्टैक्ट हुआ था. आखिरी बार इन्हें 1907 में देखा गया था.
इसके बाद कई बार इन्हें ढूंढने की कोशिश की गई और इनके इलाकों को छाना गया, लेकिन उनका कोई पता नहीं चला. उसके बाद उन्हें विलुप्त घोषित कर दिया गया. माना जाता है कि इनके विलुप्त होने का असली कारण बीमारी बताया जाता है.
5. शोमपेन/ निकोबारी जनजाति
ये वो जनजाति है जिसमें शायद सबसे ज्यादा बदलाव हुआ है और वो आधुनिक समाज का हिस्सा बनते जा रहे हैं. पर फिर भी इस समाज ने अपनी कई खासित बचा कर रखी है. निकोबारी लोगों की भाषा, उनका पहनावा, नृत्य आदि बहुत कुछ ऐसा है जिसमें ज्यादा बदलाव नहीं हुआ है. 1840 के दशक में पहली बार इस जनजाति से संपर्क साधा गया था. 2014 में पहली बार इस जनजाति को वोटिंग के लिए साथ में लाया गया था. यानी इस जनजाति का आधुनिकरण भी हाल ही में हुआ है.
2001 की जनगणना में ये कहा गया था कि इस जनजाति के 300 लोग मौजूद हैं. शोमपेन जनजाति के लोगों को सबसे ज्यादा आधुनिक माना जा सकता है और यही कारण है कि इस जनजाति के लोग आसानी से घुलमिल जाते हैं और बहुत आसान है यहां जाना.
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