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यद्यपि श्री कृष्ण के परम मित्र सुदामा की छवि से सभी भली-भांति परिचित हैं, लेकिन शायद ही कोई जानता हो कि परम अवतार श्रीकृष्ण को श्राप से बचने के लिए सुदामा ने स्वयं एक दरिद्र का जीवन चुना था। यही कारण है कि सुदामा परम मित्र और भगवान के भक्त होते हुए भी इतने दरिद्र थे। एक कथा के अनुसार एक अत्यंत गरीब ब्राह्मणी थी।
वह पूरी तरह भिक्षा मांगकर रहती थी लेकिन दुर्भाग्य से एक समय ऐसा भी आया जब उसे पांच दिनों तक भिक्षा नहीं मिली। पाचो दिन वह भगवान को याद करके सोती थी, छठे दिन उसे केवल दो मुट्ठी चना मिला। चना पाकर वह बहुत खुश हुई लेकिन जब वह झोपड़ी में पहुंची तो रात हो चुकी थी।
उस ब्राह्मणी ने सोचा कि मैं इन चने को रात में नहीं खाऊंगा, सुबह कन्हैया को भोग लगाकर ही मैं इन्हें स्वीकार करूंगी। ऐसा सोचकर ब्राह्मणी चनों को एक कपड़े में बांध दिया। वह कन्हैया का नाम याद करके गहरी नींद में सो गयी । लेकिन वे कहते हैं! न तो अनाज पर अनाज लिखा है।
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ब्राह्मणी के सोते ही कुछ चोर उसकी कुटिया में चोरी करने आए। लेकिन उस बेचारे ब्राह्मणी के कुटिया में चने के पैकेट के अलावा कुछ नहीं था। चोरों को चने की वह गठरी मिली, चोर समझ गए कि इसमें कुछ क़ीमती हीरे के रत्न हैं, इसलिए ब्राह्मणी जाग गई और शोर मचाने लगी।
ब्राह्मणी का शोर सुनकर गांव के सभी लोग चोरों को पकड़ने के लिए दौड़े, चोर पोटली लेकर भाग गए। पकड़े जाने के डर से सभी चोर संदीपन मुनि के आश्रम में छिप गए। जहां सुदामा और भगवान श्री कृष्ण की शिक्षा हुई थी।तब गुरुमाता को लगा कि कोई आश्रम के अंदर आ गया है, गुरुमाता देखने के लिए आगे बढ़ी, चोर को लगा कोई आ रहा है, चोर डर गए और आश्रम से भागने लगे।
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भागते-भागते चोरों से वो चने से भरे गट्ठर वही गिर गये के । और सभी चोर भाग निकले। दूसरी ओर, वह ब्राह्मणी भूख से परेशान थी जब ब्राह्मणी को पता चला कि चोरों ने उसके चने का बंडल छीन लिया है। उसने बड़े दुखी मन से श्राप दिया कि बेचारी असहाय का चना जो भी खाएगा वह दरिद्र हो जाएगा।
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वही जब सुबह गुरु माता आश्रम में झाडू लगाना शुरू किया तब सफाई करते समय गुरु माता को वही चने का पैकेट मिला। गुरु माता ने बंडल खोल को देखा तो उसमें चने थे । सुदामा जी और कृष्ण रोज की तरह जंगल से लकड़ी लाने जा रहे थे, तभी गुरुमाता ने उन्हें वही चने का पैकेट दिया और कहा कि भूख लगने पर दोनों इसे खा लेना फिर जैसे ही सुदामा जी ने चने की गठरी ली, उन्हें सारा रहस्य समझ में आ गया।
सुदामा ने सोचा कि अगर श्री कृष्ण ने इस चने को स्वीकार कर लिया तो पूरी सृष्टि गरीब और गरीब हो जाएगी। यही सोच कर उन्होंने ये सारे चने की मुर्गियां खुद खा लीं और उस गरीब ब्राह्मणी का श्राप अपने ऊपर ले लिया। लेकिन उन्होंने अपने मित्र श्रीकृष्ण को चने का एक दाना भी नहीं दिया।
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पवित्रता से बचने के लिए खुद सुदामा ने अपना पूरा जीवन गरीबी में बिताया और दोस्तों आपको पता ही होगा कि जब सुदाम द्वारका गए तो भगवान कृष्ण ने चुपके से उनकी कुटिया को अपने जैसे महल में बदल दिया था, लेकिन सुदामा उस महल में कभी नहीं गए, उन्होंने उनका शेष जीवन कान्हे के मंदिर में उनके चरणों में ही बिताया तो दोस्तों, यह दुनिया वास्तव में सुदामा की हमेशा कर्जदार है जो गरीबी से बचने के लिए जीवन भर जरूरतमंदों के लिए समर्पित होगी।
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