15 मार्च से बसंत ऋतु शुरू हो जाएगी। इसे ऋतुराज कहा जाता है। इसके बाद 17 मार्च को होलिका दहन होगा और अगले दिन 18 मार्च को होली खेली जाएगी। होली खेल ही बसंत ऋतु के आगमन का उत्सव मनाया जाता है। पुराने समय में बसंत ऋतु के आगमन पर फूलों से बने रंगों को उड़ाकर उत्सव मनाते थे। इसी वजह से रंगों से होली खेलने की परंपरा शुरू हुई है। कामदेव की वजह से बसंत ऋतु की उत्पत्ति हुई है, इसीलिए इसे कामदेव का पुत्र भी माना जाता है। गीता में श्रीकृष्ण ने कहा है कि ऋतुओं में मैं बसंत हूं यानी बसंत ऋतु को श्रीकृष्ण का स्वरूप माना जाता है।
होली के आसपास से ही बसंत ऋतु का असर दिखने लगता है। बसंत ऋतु में ठंडी हवाएं चलने लगती हैं, मौसम सुहावना हो जाता है, पेड़ों में नए पत्ते आना शुरू हो जाते हैं, सरसों के खेत में पीले फूल खिल जाते हैं, आम के पेड़ों पर केरी के बौर आने लगते हैं। चारों ओर प्रकृति के अद्भुत रंग दिखाई देते हैं। इसी मनमोहक वातावरण की वजह से बसंत को ऋतुराज कहा जाता है।
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ये है बसंत ऋतु से जुड़ी कथा
शिवपुराण के मुताबिक देवी सती ने अपने पिता दक्ष के हवन कुंड में कूदकर देह त्याग दी थी। इसके बाद सती के वियोग में शिव जी ध्यान में बैठ गए थे। तारकासुर जानता था कि शिव जी सती के वियोग में ध्यान में बैठे हैं, उनका ध्यान टूटना असंभव ही है और वे दूसरा विवाह भी नहीं करेंगे। उस समय तारकासुर ने तप करके ब्रह्मा जी को प्रसन्न कर लिया। ब्रह्मा जी प्रकट हुए तो तारकासुर ने वर मांगा कि उसकी मृत्यु सिर्फ शिव जी का पुत्र ही कर सके, ऐसा वरदान दीजिए। ब्रह्माजी ने तारकासुर को ये वर दे दिया।
ब्रह्मा जी के वरदान से तारकासुर ने सभी देवताओं को पराजित कर दिया और स्वर्ग छीन लिया। तारकासुर के अत्याचार से देवता, ऋषिमुनि और मनुष्य परेशान हो गए थे। सभी देवता और ऋषि मुनि विष्णु जी के पास पहुंचे। ब्रह्मा जी के वरदान की वजह से विष्णु जी भी तारकासुर का वध नहीं कर सकते थे।
सभी देवताओं ने विचार किया कि किसी तरह शिव जी का ध्यान भंग करना होगा और उनसे फिर से विवाह करने के लिए प्रार्थना करनी होगी। देवताओं ने शिवजी का ध्यान भंग करने का काम कामदेव को सौंप दिया। कामदेव ने शिवजी का तप भंग करने के लिए बसंत ऋतु को उत्पन्न किया।
बसंत ऋतु के सुहावने मौसम में कामदेव ने काम बाण शिव जी पर चलाए, इस कारण शिव जी का ध्यान टूट गया। ध्यान टूटने से शिव जी क्रोधित हो गए और उन्होंने तीसरा नेत्र खोलकर कामदेव को भस्म कर दिया। जब शिव जी का क्रोध शांत हुआ तो देवताओं ने तारकासुर के बारे में बताया।
कामदेव की पत्नी रति ने शिवजी से कामदेव को जीवित करने की प्रार्थना की। तब शिवजी ने सती को वरदान दिया कि द्वापर युग में श्रीकृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न के रूप में कामदेव का फिर से जन्म होगा। इसके बाद शिव जी का विवाह माता पार्वती से हुआ। विवाह के बाद कार्तिकेय स्वामी का जन्म हुआ और कार्तिकेय ने तारकासुर का वध कर दिया।
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