ॐ शब्द इस दुनिया में किसी ना किसी रूप में सभी मुख्य संस्कृतियों का प्रमुख भाग है|
ॐ के उच्चारण से ही शरीर के अलग अलग भागों मे कंपन शुरू हो जाती है जैसे की
‘अ’:- शरीर के निचले हिस्से में (पेट के करीब) कंपन करता है|
‘उ’:– शरीर के मध्य भाग में कंपन होती है जो की (छाती के करीब) .
‘म’:- से शरीर के ऊपरी भाग में यानी (मस्तिक) कंपन होती है |
ॐ शब्द के उच्चारण से कई शारीरिक, मानसिक, और आत्मिक लाभ मिलते हैं|
ओंकार ध्वनि ‘ॐ’ को दुनिया के सभी मंत्रों का सार कहा गया है. यह उच्चारण के साथ ही शरीर पर सकारात्मक प्रभाव छोड़ती है. भारतीय सभ्यता के प्रारंभ से ही ओंकार ध्वनि के महत्त्व से सभी परिचित रहे हैं. पांच अवयव- ‘अ’ से अकार, ‘उ’ से उकार एवं ‘म’ से मकार, ‘नाद’ और ‘बिंदु’ इन पांचों को मिलाकर ‘ओम’ एकाक्षरी मंत्र बनता है.
आइंसटाइन भी यही कह कर गए हैं कि ब्राह्मांड फैल रहा है. आइंसटाइन से पूर्व भगवान महावीर ने कहा था. महावीर से पूर्व वेदों में इसका उल्लेख मिलता है. महावीर ने वेदों को पढ़कर नहीं कहा, उन्होंने तो ध्यान की अतल गहराइयों में उतर कर देखा तब कहा.
ॐ को ओम कहा जाता है. उसमें भी बोलते वक्त ‘ओ’ पर ज्यादा जोर होता है. इसे प्रणव मंत्र भी कहते हैं. . इस मंत्र का प्रारंभ है अंत नहीं. यह ब्रह्मांड की अनाहत ध्वनि है. अनाहत अर्थात किसी भी प्रकार की टकराहट या दो चीजों या हाथों के संयोग के उत्पन्न ध्वनि नहीं. इसे अनहद भी कहते हैं. संपूर्ण ब्रह्मांड में यह अनवरत जारी है.
तपस्वी और ध्यानियों ने जब ध्यान की गहरी अवस्था में सुना की कोई एक ऐसी ध्वनि है जो लगातार सुनाई देती रहती है शरीर के भीतर भी और बाहर भी. हर कहीं, वही ध्वनि निरंतर जारी है और उसे सुनते रहने से मन और आत्मा शांती महसूस करती है तो उन्होंने उस ध्वनि को नाम दिया ओम.
ॐ शब्द तीन ध्वनियों से बना हुआ है- अ, उ, म इन तीनों ध्वनियों का अर्थ उपनिषद में भी आता है. यह ब्रह्मा, विष्णु और महेश का प्रतीक भी है और यह भू: लोक, भूव: लोक और स्वर्ग लोग का प्रतीक है.
तंत्र योग में एकाक्षर मंत्रों का भी विशेष महत्व है. देवनागरी लिपि के प्रत्येक शब्द में अनुस्वार लगाकर उन्हें मंत्र का स्वरूप दिया गया है. उदाहरण के तौर पर कं, खं, गं, घं आदि. इसी तरह श्रीं, क्लीं, ह्रीं, हूं, फट् आदि भी एकाक्षरी मंत्रों में गिने जाते हैं.
सभी मंत्रों का उच्चारण जीभ, होंठ, तालू, दाँत, कंठ और फेफड़ों से निकलने वाली वायु के सम्मिलित प्रभाव से संभव होता है. इससे निकलने वाली ध्वनि शरीर के सभी चक्रों और हारमोन स्राव करने वाली ग्रंथियों से टकराती है. इन ग्रंथिंयों के स्राव को नियंत्रित करके बीमारियों को दूर भगाया जा सकता है.
प्रातः उठकर पवित्र होकर ओंकार ध्वनि का उच्चारण करें. ॐ का उच्चारण पद्मासन, अर्धपद्मासन, सुखासन, वज्रासन में बैठकर कर सकते हैं. इसका उच्चारण 5, 7, 10, 21 बार अपने समयानुसार कर सकते हैं. ॐ जोर से बोल सकते हैं, धीरे-धीरे बोल सकते हैं. ॐ जप माला से भी कर सकते हैं.
इससे शरीर और मन को एकाग्र करने में मदद मिलेगी. दिल की धड़कन और रक्तसंचार व्यवस्थित होगा. इससे मानसिक बीमारियाँ दूर होती हैं. काम करने की शक्ति बढ़ जाती है. इसका उच्चारण करने वाला और इसे सुनने वाला दोनों ही लाभांवित होते हैं. इसके उच्चारण में पवित्रता का ध्यान रखा जाता है.
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ॐ शब्द के उच्चारण का महत्व
ओम – सुबह उठकर ॐकार ध्वनि का उच्चारण करने से शरीर और मन को एकाग्र करने में सहायता मिलती है ,दिल की धड़कन और रक्त-चाप सुचारू होता है | ओम नमो – ओम के साथ नमो शब्द के जुड़ने से मन में बिनम्रता महसूस होती हैं। इससे सकारात्मक उर्जा का संचार होता है | ॐ शब्द तीन ध्वनियों से बना हुआ है – अ, उ, म । पहला शब्द है ‘अ’ जो कंठ से निकलता है। दूसरा है ‘उ’ जो हृदय को प्रभावित करता है। तीसरा शब्द ‘म्’ है जो नाभि में कम्पन करता है। इस सर्वव्यापक पवित्र ध्वनि के गुंजन का हमारे शरीर की नस नाडिय़ों पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है | यह ब्रह्मा, विष्णु और महेश का प्रतीक भी है और यह भू: लोक,और स्वर्ग लोग का प्रतीक भी माना जाता है।
ओ३म् की ध्वनि का सभी सम्प्रदायों में महत्त्व है। ॐ हिन्दू धर्म का प्रतीक चिह्न ही नहीं बल्कि हिन्दू परम्परा का सबसे पवित्र शब्द है। हमारे सभी वेदमंत्रों का उच्चारण भी ओ३म् से ही प्रारंभ होता है, जो ईश्र्वरीय शक्ति की पहचान है। परमात्मा का निज नाम ओ३म् है। अंग्रेज़ी में भी ईश्र्वर के लिए सर्वव्यापक शब्द का प्रयोग होता है, यही सृष्टि का आधार है। यह सिर्फ़ आस्था नहीं, इसका वैज्ञानिक आधार भी है। प्रतिदिन ॐ का उच्चारण न सिर्फ़ ऊर्जा शक्ति का संचार करता है, शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढाकर कई असाध्य बीमारियों से दूर रखने में मदद करता है।
आध्यात्म में ॐ का विशेष महत्त्व है, वेद शास्त्रों में भी ॐ के कई चमत्कारिक प्रभावों का उल्लेख मिलता है। आज के आधुनिक युग में वैज्ञानिकों ने भी शोध के मध्यम से ॐ के चमत्कारिक प्रभाव की पुष्टी की है। पाश्चात्य देशों में भारतीय वेद पुराण और हज़ारों वर्ष पुरानी भारतीय संस्कृति और परम्परा काफ़ी चर्चाओं और विचार विमर्श का केन्द्र रहे हैं दूसरी ओर वर्तमान की वैज्ञानिक उपलब्धियों का प्रेरणा स्रोत भारतीय शास्त्र और वेद ही रहे हैं, हलाकि स्पष्ट रूप से इसे स्वीकार करने से भी वैज्ञानिक बचते रहे हैं। योगियों में यह विश्वास है कि इसके अंदर मनुष्य की सामान्य चेतना को परिवर्तित करने की शक्ति है। यह मंत्र मनुष्य की बुद्धि व देह में परिवर्तन लाता है। ॐ से शरीर, मन, मस्तिष्क में परिवर्तन होता है और वह स्वस्थ हो जाता है। ॐ के उच्चारण से फेफड़ों में, हृदय में स्वस्थता आती है। शरीर, मन और मस्तिष्क स्वस्थ और तनावरहित हो जाता है। ॐ के उच्चारण से वातावरण शुद्ध हो जाता है।
ॐ शब्द को हिन्दू धर्म का प्रतीक चिह्न ही नहीं अपितु इसे हिन्दू परम्परा का सबसे पवित्र शब्द शब्द मन जाता है।हिन्दू धर्म के सभी वेद मंत्रों का उच्चारण भी ॐ से ही प्रारंभ किया जाता रहा है | ॐ नाम में हिन्दू ,मुस्लिम या इसाई जैसी कोई भी बात नहीं है। यह सोचना कि ॐ किसी एक खास धर्म का चिन्ह है,यह बिलकुल भी गलत है, बल्कि ॐ शब्द तो उसी समय से चला आ रहा है जब कोई धर्म इस दुनिया में था ही नही उस समय सिर्फ एक ही धर्म था और वो थी मानवता ।
यह तो अच्छाई, शक्ति, ईश्वर भक्ति और आदर का प्रतीक मन जाता है। उदाहरण के तैर पर अगर हिन्दू अपने सब मन्त्रों और भजनों में ॐ शब्द को शामिल करते हैं , तो इसाई धर्म में भी इसी सी मिलते जुलते एक शब्द आमेन का प्रयोग धार्मिक दृष्टी से किया जाता है । मुस्लिम इसको आमीन कहते है तथा इस शब्द को यद् करते है , बौद्ध इसे “ओं मणिपद्मेहूं” कह कर प्रयोग करते हैं। सिख समुदाय भी “इक ओंकार” अर्थात एक ॐ का गुण गाता है। यह अंग्रेज़ी का शब्द omni, जिसका अर्थ अनंत और कभी ख़त्म न होने वाले तत्त्वों पर लगाया जाता हैं | इन बातो और तथ्यों से यह सिद्ध होता है कि ॐ किसी धर्म , मज़हब या सम्प्रदाय का नही बल्कि पूरी इंसानियत का है। ठीक उसी प्रकार से जैसे कि हवा पानी रौशिनी समस्त मानव जाति के लिए हैं न कि केवल किसी एक सम्प्रदाय समुदाय और धर्म के लिए है के लिए ||
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