वक्षों को घूरने और ताड़ने वालों को नया शगल मिल गया हैः असली और नकली स्तनों में भेद करना. ब्रेस्ट इम्प्लांट्स की 50वीं सालगिरह पर भारतीय सर्जरी का एक राज लॉन्जरी की अलमारी से बाहर निकल आया है. वक्षों को उभारने और उन्हें तराशने के लिए एस्थेटिक सर्जरी (सौंदर्य संबंधी सर्जरी) की लोकप्रियता मेट्रो शहरों में तेजी से बढ़ी है. इस मामले में वैश्विक स्तर पर भारत को शीर्ष 10 देशों में जगह भी मिली है. सुंदर क्लीवेज (स्तनों के बीच की जगह) नया स्वाभिमान है. इसका बाजार अब सोशलाइट और फिल्मी सितारों से लेकर उच्च और मध्यवर्ग तक फैल गया है, जिसमें साइज-जीरो लड़कियां, भावी दुल्हनें, महत्वाकांक्षी प्रोफेशनल और 40 से ऊपर की मांएं भी शामिल हैं. इस साल पूरी दुनिया में फैले फ्रांस के कैंसर पैदा करने वाले ब्रेस्ट इम्प्लांट्स के स्वास्थ्य संबंधी खतरे के बावजूद वक्षों को तराशने के लिए की जाने वाली सर्जरी भारत में राष्ट्रीय मनोरंजन बनती जा रही है.
पुरुषों के पास अपनी वजहें हैं. ‘डॉक्टर, क्या आप मेरे सीने का कुछ कर सकते हैं? अगले महीने मेरी शादी हो रही है. मैं सिर्फ एक धोती पहनकर अपनी छाती लटकाए नहीं खड़ा होना चाहता.’ बंगलुरू का यह युवा सॉफ्टवेयर प्रोफेशनल है, अपने मूब्स (या मेल बूब्स) हटवाना चाहता है. रमैया मेडिकल कॉलेज के सर्जन और प्रोफेसर डॉ. एम.एस. वेंकटेश के लिए वह गाइनीकोमास्टिया का एक और मरीज भर है, जिसमें हॉर्मोन, जींस और निष्क्रिय जीवनशैली के चलते मर्दों की छाती पर असामान्य रूप से चर्बी जमा हो जाती है. डॉक्टर उसके एरियोला (निपल के चारों ओर का काला हिस्सा) के नीचे छोटा-सा चीरा लगाकर उसके सीने को आकार दे देते हैं. डॉ. वेंकटेश कहते हैं, ‘गाइनीकोमास्टिया भारतीय पुरुषों में आम है. इनमें से अधिकांश में चर्बी का जमाव होता है जो प्रौढ़ता के दौरान शुरू हो जाता है.’ जब 1994 में उन्होंने अपने करियर की शुरुआत की थी तो उनके पास साल भर में ऐसे 7-8 मरीज ही आते थे. अब उनकी कुल सर्जरी में 35 फीसदी इसी तरह की होती हैं.
पिछले दो साल में ब्रेस्ट सर्जरी ने नाक की प्रचलित सर्जरी का स्थान ले लिया है. फिल्मों, टीवी विज्ञापनों, होर्डिंगों और पत्रिकाओं में हमेशा दिखाए जा रहे सिक्स-पैक वाले खूबरसूरत पुरुष और न्यूनतम चीरे वाली सर्जरी की नई तकनीकों के पहुंच के भीतर होने के चलते पुरुष कॉस्मेटिक सर्जरी की नई प्रक्रियाओं का सहारा लेकर अपनी मर्दानगी फिर से कायम कर रहे हैं. एसोसिएशन ऑफ प्लास्टिक सर्जंस ऑफ इंडिया के एक अध्ययन के मुताबिक, पुरुषों में सीने की सर्जरी ने पिछले 5 साल में 150 फीसदी की बढ़त दर्ज की है. चंडीगढ़ के पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल एजुकेशन ऐंड रिसर्च (पीजीआइएमईआर) में एक दशक पहले तक ज्यादातर महिलाएं इसके लिए आया करती थीं. प्लास्टिक सर्जरी विभाग के अध्यक्ष डॉ. रमेश कुमार शर्मा बताते हैं, ‘पिछले तीन-चार साल में यहां आने वालों में एक-चौथाई पुरुष हैं. पुरुष अपने रूप को लेकर अधिक अपेक्षा रखने वाले और आक्रामक हो गए हैं.’
डॉ. राकेश खजांची एक लड़की को बताते हैं, ‘मैं आपका साइज 32 से 36 नहीं बना सकता.’ उनकी मरीज शानदार वक्ष वाली एक अभिनेत्री की तस्वीरों की ओर इशारा करते हुए जिद करती है, ‘लेकिन मुझे वह चाहिए.’ डॉ. खजांची को 30 साल के करियर में पहली बार क्लीवेज की ललक ने हैरत में डाल दिया. गुड़गांव की मेदांता मेडिसिटी के प्लास्टिक, एस्थेटिक और रीकंस्ट्रक्टिव सर्जरी के डायरेक्टर स्तन की संरचना का खाका खींचते हुए अपनी बेचैनी को छिपाने की भरपूर कोशिश करते हैं. ‘सामान्य वक्ष टियरड्रॉप (आंसू की बूंद) के आकार के होते हैं. वे कभी पूरी तरह गोल नहीं होते. बिना सहारे के क्लीवेज नहीं दिखा सकते और उस तरह से कभी उभरे नहीं होते. तस्वीरों पर भरोसा मत करिए.’ वह लड़की नाराज हो जाती है और उसके चिंतित माता-पिता उसके वक्ष को जितना हो सके उतना बड़ा करने के लिए डॉक्टर को मनाते हैं. यह कॉस्मेटिक सर्जन के चैंबर की सामान्य घटना है.
इस बात को 50 साल बीत चुके हैं जब अमेरिका के टेक्सास की गृहिणी टिमी ज्यां लिंड्से को एक केमिकल कंपनी के डॉक्टरों ने एक नए तरह के ऑपरेशन के लिए राजी किया था. इस पर अब भी रहस्य और खामोशी बरकरार है कि यह भारत कब और कैसे आया. कई जानी-मानी हस्तियों की ब्रेस्ट सर्जरी कर चुके मुंबई के डॉ. नरेंद्र पांड्या 1973 के अपने पहले ऑपरेशन को याद करते हैं: यह आधी रात को अंजाम दी गई एक गुप्त सर्जरी थी. मरीज का चेहरा ढका हुआ था और उन्हें उसका नाम नहीं बताया गया था. एसोसिएशन ऑफ प्लास्टिक सर्जन्स की रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले पांच साल में ब्रेस्ट सर्जरी बेहद लोकप्रिय कॉस्मेटिक सर्जरी में तब्दील हो चुकी है. इंटरनेशनल सोसाइटी ऑफ एस्थेटिक प्लास्टिक सर्जरी सर्वे के मुताबिक, भारत में 2010-11 में 51,000 ब्रेस्ट सर्जरी की गई, जबकि वैश्विक स्तर पर यह आंकड़ा 15 लाख है. यही नहीं, औरतें अब 275-325 सीसी (क्यूबिक सेंटी मीटर) के मध्यम आकार के इम्प्लांट्स की बजाए 350-400 सीसी के इम्प्लांट्स की मांग कर रही हैं.
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पुरुषों की कमजोरी मिटाने के देसी तरीके
मूसली काली और सफेद दो तरह की होती है। सफेद मूसली काली मूसली से अधिक गुणकारी होती है और वीर्य को गाढ़ा करने वाली होती है। मूसली का 3-3 ग्राम चूर्ण सुबह और शाम दूध के साथ लेने से वीर्य गाढ़ा होता है और शरीर में काम-उत्तेजना की वृद्धि होती है।
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