पिछले दिनों एक ऑनलाइन सर्वेक्षण में डॉ.आंबेडकर को महात्मा गाँधी के बाद सबसे महान भारतीय चुना गया। भारत के लोकतंत्र को एक आधुनिक सांविधानिक स्वरूप देने में डॉ.आंबेडकर का योगदान अब एक स्थापित तथ्य है जिसे शायद ही कोई चुनौती दे सकता है। डॉ.आंबेडकर को मिले इस मुकाम के पीछे एक लंबी जद्दोजहद है। ऐसे में, यह देखना दिलचस्प होगा कि डॉ.आंबेडकर के आंदोलन की शुरुआत में उन्हें लेकर कैसी बातें हो रही थीं। हम इस सिलसिले में हम महत्वपूर्ण स्रोतग्रंथ ‘डॉ.अांबेडकर और अछूत आंदोलन ‘ का हिंदी अनुवाद पेश कर रहे हैं। इसमें डॉ.अंबेडकर को लेकर ख़ुफ़िया और अख़बारों की रपटों को सम्मलित किया गया है। मीडिया विजिल के लिए यह महत्वपूर्ण अनुवाद प्रख्यात लेखक और समाजशास्त्री कँवल भारती कर रहे हैं जो इस वेबसाइट के सलाहकार मंडल के सम्मानित सदस्य भी हैं। प्रस्तुत है इस साप्ताहिक शृंखला की पैतीसवीं कड़ी – सम्पादक
हरिजनों के बीच मतभेद
एकता के लिए डा. आंबेडकर का तर्क
(दि टाइम्स आॅफ इंडिया, 5 जुलाई 1939)
दलित वर्गों के विभिन्न वर्गों में अलग-अलग राय का होना दुखद है, परन्तु जो काम उन्होंने किया, वह किसी खास वर्ग के लिए नहीं, बल्कि सम्पूर्ण समुदाय के हित के लिए किया है। ये विचार डा. बी. आर. आंबेडकर ने आर. एम. भाट हाईस्कूल, परेल, बम्बई में आयोजित रोहिदास शिक्षण समाज की सभा में व्यक्त किए। सभा के अध्यक्ष मि. एम. वी. डोंडे थे।
डा. आंबेडकर ने आगे कहा कि चंबार समुदाय, जो इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी से अलग हो गया था, काॅंग्रेस के इस प्रभाव में था कि वह ज्यादा सुधार करता है, परन्तु यह उसका गलत विश्वास था। उन्होंने विभिन्न समुदायों में एकता बनाए रखने की अपील की।
अध्यक्ष ने कहा कि सरकार ने (चंबार) समुदाय के लिए जो छात्रवृत्ति पेश की है, वह काफी नहीं है। उन्हें इससे भी ज्यादा प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए।
सभा में यहप्रस्ताव पारित किया गया कि प्रत्येक जिले में समुदाय के लिए निशुल्क आवासीय स्कूल होने चाहिए, और जो लड़के-लड़कियाॅं अभी की परीक्षाओं में फेल हुए हैं, उन्हें सरकार तीन महीने में पुनः परीक्षा में बैठने की अनुमति दे।
निम्नलिखित व्यक्ति समिति के पदाधिकारी चुने गए-
श्री के. आर. पावेकर, अध्यक्ष, श्री बी. जे. देवरुखकर तथा श्री बी. जी. वागमारे, सचिव, एवं 40 सदस्य।
215.
मराठी विद्वान को थैली
डा. आंबेडकरने जनता से सहायता
(दि बाम्बे क्राॅनिकल, 14 जुलाई 1939)
डा. आंबेडकर ने कहा है कि मराठी विद्वान श्री जे. आर. अजगाॅंवकर को उनके 60वें जन्मदिन के अवसर पर उनके मित्रों और प्रशंसकों के द्वारा थैली भेंट करने का निश्चय किया गया है। उन्होंने यह भी कहा कि श्री अजगाॅंवकर ने जिस प्राचीन साहित्य के अध्ययन को अपने जीवन का मिशन बनाया है, उसने उन्हें कोई बड़ा प्रतिदान नहीं दिया है।
मराठी साहित्य को समृद्ध करने वाला यह विद्वान अपने जीवन के 61वें वर्ष के प्रवेश द्वार पर भी गरीब और असहाय है। कुछ समय पहले उनके साथ हुई दुखद आपदा से मराठी साहित्य के प्रेमियों के लिए इस कठिन समय में उनकी मदद करना और भी जरूरी हो जाता है।
डा. आंबेडकर ने जनता से अपना योगदान जितना शीघ्र से शीघ्र भेजने का अनुरोध किया।
216
हरिजनों की सभा
(दि बाम्बे सीक्रेट अबस्टेªक्ट, 5 अगस्त 1939)
986। श्मशान और शवदाह गृह के विषय में अपनी समस्याओं पर विचार करने के लिए बम्बई शहर के ए, बी और सी बार्डों में रहने वाले हरिजनों की एक सभा इसी 23 जुलाई को बम्बई में हुई। इस सभा में लगभग 100 लोग शामिल हुए। भाषणों में इन प्रस्तावों का समर्थन किया गया-
- हरिजनों के शवों के अन्तिम संस्कार के लिए बम्बई कारपोरेशन द्वारा रु. 7,000 की राशि स्वीकृत करने की माॅंग,
- समुदाय के लिए दाह-संस्कार और कब्रिस्तान के रूप में चर्चगेट मैदान में कहीं भी जमीन देने की माॅंग, और
- यदि जमीन नहीं दी जा सकती, तो एक मृतक के शव के साथ 15 से 20 तक शोक-संतप्त लोगों को ले जाने के लिए निशुल्क लारी उपलब्ध कराने की माॅंग।
सभा ने इन माॅंगों को नगर आयुक्त के समक्ष कार्यवाही हेतु सौंपने के लिए डा. बी. आर. आंबेडकर को अधिकृत किया।
217.
डा. आंबेडकर को वायसराय का निमन्त्रण
(दि बाम्बे क्राॅनिकल, 7 अक्टूबर 1939)
बम्बई, शुक्रवार। सोमवार को वायसराय से मिलने के लिए डा. आंबेडकर को भी आमन्त्रित किया गया है।
218.
डा. आंबेडकर और याकूब की जीत
(दि बाम्बे क्राॅनिकल, 10 अक्टूबर 1939)
नई दिल्ली, 8 अक्टूबर। महामहिम वायसराय ने श्री वी. डी. सावरकर और नवाब इस्माईल खान से मुलाकात करने के अलावा डा. बी. आर. आंबेडकर और मोहम्मद याकूब को भी मिलने की अनुमति दे दी है। चैम्बर आॅफ प्रिन्स के चासॅंसलर, नवानगर के हिज हाईनेस जेम साहेब आज दिल्ली पहुॅंच गए हैं और वायसराय हाउस में ठहरे हुए हैं। -ए. पी.
219.
काॅंग्रेस का अहंकार
डा. आंबेडकर को अल्पसंख्यकों की जरूरत
(दि बाम्बे क्राॅनिकल, 11 अक्टूबर 1939)
नई दिल्ली, 10 अक्टूबर। ‘जब तक मि. गाॅंधी और उनकी काॅंग्रेस अपने अहंकार को नहीं छोड़ते हैं और लोगों और गैर काॅंग्रेसी पार्टियों के प्रति अपना रवैया नहीं बदलते हैं, तब तक अल्पसंख्यकों की समस्या कभी हल नहीं होगी। देश-भक्ति पर सिर्फ काॅंग्रेस का ही एकाधिकार नहीं है, काॅंग्रेस से भिन्न दृष्टिकोण रखने वाले लोगों को भी अपना अलग अस्तित्व और पहिचान बनाए रखने का पूरा कानूनी अधिकार है। ये विचार डा. आंबेडकर ने आज सुबह बम्बई जाने से पूर्व एसोसिएट प्रेस को दिए गए एक वक्तव्य में कहे।
डा. आंबेडकर ने कल दिल्ली में महामहिम वायसराय से लम्बी बातचीत की है। माना जाता है कि उन्होंने महामहिम को भारत के संवैधानिक विकास के साथ अपने समुदाय के दृष्टिकोण को पूरी तरह अवगत करा दिया है। इस सम्बन्ध में, डा. आंबेडकर ने बताया कि पूना समझौते पर अमल सन्तोषजनक नहीं है। बहुसदस्यों वाले निर्वाचन क्षेत्रों के न होने से अनुसूचित वर्गों के वास्तविक प्रतिनिधि विधायिका में नहीं आए थे। वे अगले संशोधन में इस प्रश्न को उठाने वाले हैं, जो उनके अनुमान से मूल रूप से योजनाबद्ध होने से पहले होगा। जब तक अनुसूचित वर्गों के वास्तविक प्रतिनिधियों के प्रतिनिधित्व का कोई सुरक्षित तरीका नहीं मिलता है, उन्हें डर है कि उन्हें अपने समुदाय के लिए पृथक निर्वाचन पर जोर देना होगा।
हिन्दू मुस्लिम समस्या का सन्दर्भ देते हुए, डा. आंबेडकर ने कहा कि वे इन आरोपों में विश्वास नहीं करते हैं कि काॅंग्रेसी प्रान्तों में मुसलमानों पर अत्याचार किए जा रहे हैं। आज मुसलमान और अन्य अल्पसंख्यक देश की सरकार में अपनी भागीदारी और शासक वर्गों के साथ समानता का स्तर चाहते हैं। काॅंग्रेस इसे देने से इनकार कर रही है, जो अब तक अपने संगठन के बाहर के किसी भी वर्ग या समुदाय को पहिचानने से ही मना कर चुकी है।
उन्होंने कहा, मुसलमान अब तक सुरक्षा उपायों की माॅंग करते रहे हैं, जिसका मतलब यह था कि वे आवश्यक संरक्षण पाकर अन्य समुदायों के साथ रहने के लिए तैयार हो गए थे। आज वे हिन्दू और मुस्लिम भारत के विभाजन की माॅंग उठा रहे हैं, और यदि जनता ने उनकी इस माॅंग को अपना लिया, तो फिर संयुक्त भारत की कोई उम्मीद नहीं रह जायेगी। समस्या का समाधान आज काॅंग्रेस और बहुसंख्यक समुदाय पर टिका हुआ है, और जिस चीज की जरूरत है, वह है बड़ा दिल, राजनीतिक कौशल और वास्तविकता का अहसास।
बहुत ज्यादा देर हो सकती है
डा. आंबेडकर ने कहा, कल बहुत ज्यादा देर हो सकती है। समस्या का समाधान हो सकता है, और होना ही चाहिए। यह कोई बड़ी समस्या नहीं है, इसे वर्गीय दृष्टि से अच्छे से समझा जाना चाहिए। अल्पसंख्यकों में यह भावना आ चुकी है कि वे देश की सरकार के महत्वपूर्ण अंग हैं। अब उनके लिए यह गरिमा और आत्मसम्मान का प्रश्न बन गया है।
अन्त में डा. आंबेडकर ने कहा कि आज उन्हें अपने समुदाय को किसी अन्य बड़े समुदाय में विलीन होने से बचाने में बहुत मुश्किल हुई, परन्तु यदि काॅंग्रेस का यही रवैया बना रहा, तो उनकी आवाज बेअसर हो सकती है। अगर अनुसूचित वर्गों के लोग किसी अन्य धर्म में चले जाते हैं, तो इसकी जिम्मेदारी काॅंग्रेस की होगी। उन्होंने कहा, ‘मुझे उम्मीद है कि काॅंग्रेस में भारत को दो भागों में विभाजित होने और अनुसूचित वर्गों को एक सशक्त एवं प्रभावशाली अल्पसंख्यक के साथ विलीन से रोकने के लिए समय रहते सद्बुद्धि और राजनीतिक समझदारी आ जायेगी।’
220
बम्बई, 22 अक्टूबर 1939।
महोदय,
मुझे रिपोर्ट करना है कि स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता भगतीदास बुआ की दुखद मृत्यु पर शोक प्रकट करने के लिए इसी 21 अक्टूबर को सायं लगभग 10.30 पर डा. बी. आर. आंबेडकर, लव लेन, बम्बई के ‘ओबेडिएंट मण्डल’ के तत्वावधान में लगभग 30 अछूतों ने शोक सभा की। उनकी मृत्यु इसी माह की 3 तारीख को हुई थी। सम्भाजी तुकाराम गायकवाड़ ने सभा की अध्यक्षता की।
सभा अध्यक्ष, के. जी. शिन्दे, विट्ठल खेड़ेकर, अपाजी गंगाराम लोखण्डे, गौरोजी मोरे, गणपत पवार और किसी साल्वी ने भगतीदास बुआ की सेवाओं पर मराठी में भाषण दिए।
भगतीदास बुआ की मृत्यु पर शोक प्रकट करते हुए उनकी आत्मा की शान्ति के लिए प्रार्थना की गई और उनके परिवार के प्रति सम्वेदना व्यक्त की गई।
सभा का समापन 11 बजे रात को हुआ।
कोई भी शार्टहैण्ड नोट नहीं लिया गया।
(ह.) हंसराज
उप निरीक्षक
23 अक्टूबर।
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