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पौष माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को सफला एकादशी कहा जाता है। इस बार सफला एकादशी व्रत 19 दिसंबर को है। भगवान विष्णु ने जनकल्याण के लिए अपने शरीर से पुरुषोत्तम मास की एकादशियों सहित कुल 26 एकादशियों को उत्पन्न किया।
Saphala Ekadashi December 2022 Date And Time : हिंदू धर्म में सभी व्रतों में श्रेष्ठ एकादशी (Ekadashi) व्रत का बहुत अधिक महत्व है। हर माह में दो बार एकादशी पड़ती है। पौष माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को सफला एकादशी (Saphala Ekadashi) कहा जाता है। इस बार सफला एकादशी व्रत 19 दिसंबर को है। भगवान विष्णु ने जनकल्याण के लिए अपने शरीर से पुरुषोत्तम मास की एकादशियों सहित कुल 26 एकादशियों को उत्पन्न किया। भगवतगीता में भगवान श्रीकृष्ण ने एकादशी तिथि को स्वयं के समान ही बलशाली बताया है। सभी एकादशियों में नारायण के समान ही फल देने का सामर्थ्य है। इस दिन भगवान विष्णु की पूरे विधि विधान के साथ पूजा अर्चना करने से व्यक्ति को जीवन में सुख-समृद्धि और सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
सफला एकादशी का महत्व ( Saphala Ekadashi Importance) – सफला एकादशी तो अपने नाम के अनुसार ही भक्तों के सभी कार्यों को सफल एवं पूर्ण करने वाली है। धर्मग्रंथों में इस एकादशी के बारे में कहा गया है कि हज़ारों वर्ष तक तपस्या करने से जिस पुण्यफल की प्राप्ति होती है, वह पुण्य भक्तिपूर्वक रात्रि जागरण सहित सफला एकादशी का व्रत करने से मिलता है। इस दिन मंदिर एवं तुलसी के नीचे दीपदान करने का भी बहुत महत्त्व बताया गया है। ग्रंथों में सफला एकदशी एक ऐसे दिन के रूप में वर्णित है जिस दिन व्रत रखने से प्राणी के सारे दुःख समाप्त होते हैं और भाग्य खुल जाता है। इस एकदशी का व्रत रखने से मनुष्य की समस्त मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
पूजाविधि (Ekadashi Puja Vidhi) – साधक को इस दिन व्रत रहकर भगवान विष्णु की मूर्ति को ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ‘ मंत्र का उच्चारण करते हुए पंचामृत से स्नान आदि कराकर वस्त्र, चन्दन, जनेऊ, गंध, अक्षत, पुष्प, धूप-दीप, नैवैद्य, ऋतुफल, पान, नारियल आदि अर्पित करके कपूर से आरती उतारनी चाहिए। रात के समय जागरण करके यदि व्रत का पारण किया जाए तो यह बहुत ही उत्तम फलदायी माना जाता है। इस दिन विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करना बहुत ही लाभकारी रहता है।
कथा (Ekadashi Katha) – पुराणों के अनुसार राजा माहिष्मत का ज्येष्ठ पुत्र सदैव पाप कार्यों में लीन रहकर देवी-देवताओं की निंदा किया करता था। पुत्र को ऐसा पापाचारी देखकर राजा ने उसका नाम ‘लुम्भक’ रख दिया और उसे अपने राज्य से निकाल दिया। पाप बुद्धि लुम्भक वन में प्रतिदिन मांस तथा फल खाकर जीवन निर्वाह करने लगा। उस दुष्ट का विश्राम स्थान बहुत पुराने पीपल वृक्ष के पास था। पौष माह के कृष्ण पक्ष की दशमी के दिन वह शीत के कारण निष्प्राण सा हो गया। अगले दिन सफला एकादशी को दोपहर में सूर्य देव के ताप के प्रभाव से उसे होश आया। भूख से दुर्बल लुम्भक जब फल एकत्रित करके लाया तो सूर्य अस्त हो गया। तब उसने वही पीपल के वृक्ष की जड़ में फलों को निवेदन करते हुए कहा- ‘इन फलों से लक्ष्मीपति भगवान विष्णु संतुष्ट हों’। अनायास ही लुम्भक से इस व्रत का पालन हो गया जिसके प्रभाव से लुम्भक को दिव्य रूप, राज्य, पुत्र आदि सभी प्राप्त हुए।
शुभमुहूर्त (Saphala Ekadashi Shubh Muhurat) – पंचांग के अनुसार, पौष माह के कृष्ण पक्ष की एकादाशी तिथि 19 दिसंबर को सुबह 3 बजकर 33 मिनट से एकादशी तिथि लग जाएगी और यह मंगलवार 20 तारीख को दोपहर 2 बजकर 33 मिनट पर समाप्त होगी। ऐसे में व्रत 19 दिसंबर को रखा जाएगा।
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