डायबिटीज जिसे आम भाषा में शुगर की बीमारी कहा जाता है एक आम समस्या है. डायबिटीज तक़रीबन हर दुसरे या तीसरे घर में पाया जाता है. इस विषय में कई भ्रान्तिया में मौजूद है और उन सभी के विषय में अधिक जानकारी आप भविष्य में आप इस ब्लॉग पर पढ़ पाएंगे. क्या मुझे डायबिटीज है? क्या मुझे इसकी जाँच करानी चाहिए? इसके लक्षण क्या है? ये किसे हो सकती है? जैसे कुछ साधारण प्रश्नों के जवाब इस देने का प्रयास इस ब्लॉग में करूंगा.
डायबिटीज का निदान – डायबिटीज के निदान के लिए ब्लड शुगर की जाँच की जाती है जो सभी छोटी बड़ी लेबोरेटरी में आसानी से उपलब्ध है. यदि आपकी फास्टिंग ब्लड शुगर (8 से 10 घंटे के उपवास के बाद सुबह याने भूके पेट की हुई जाँच) 126 मिलीग्राम प्रति डेसीलिटर से अधिक है या आपकी रैंडम (किसी भी समय की हुई) ब्लड शुगर 200 मिलीग्राम प्रति डेसीलिटर से अधिक है? या आपकी पोस्टग्लूकोज (75 ग्राम ग्लूकोज पानी के साथ पिने के 2 घंटे बाद की हुई जाँच) 200 मिलीग्राम प्रति डेसीलिटर से अधिक है या आपकी HbA1C ( 3 माह के ब्लड शुगर का औसत बताने वाली विशिष्ट जाँच) 6.5% से अधिक है तो आपको डायबिटीज है.
एक सामान्य व्यक्ति की फास्टिंग ब्लड शुगर 100 मिलीग्राम प्रति डेसीलिटर से कम होती है. 100 से 125 मिलीग्राम प्रति डेसीलिटर तक को इम्पैरेड फास्टिंग ग्लूकोज (डायबिटीज होने से पहले की अवस्था) माना जाता है. सामान्यतः खाने के 2 घंटे बाद ब्लड शुगर 140 मिलीग्राम प्रति डेसीलिटर से कम होती है. 140 से 200 मिलीग्राम प्रति डेसीलिटर के बिच को इम्पैरेड ग्लूकोस टॉलरेंस कहा जाता है. इन दोनों अवस्थाओ में डायबिटीज होने की सम्भावना होती है और इन्हें प्री डायबिटीज भी कहा जाता है.
डायबिटीज के लक्षण – डायबिटीज के लक्षण तभी दिखाई पड़ते है जब या तो काफी दिनों से डायबिटीज होने के कारन ब्लड शुगर की मात्र बहोत अधिक बढ़ जाए या डायबिटीज के कारण कोई और बीमारी हो जाए. शुरुवाती अवस्था में इस बीमारी में कोई भी लक्षण नहीं आते.
बहोत अधिक शुगर बढ़ने के बाद पेशाब अधिक लगना, प्यास अधिक लगना, भूक अधिक लगना और साथ में वजन कम होना. इसके अलावा थकान, काम में अरुचि, पैरो में झुन्झुलाहट या जलन, चक्कर आना, शारीर में दर्द होना जैसे लक्षण भी हो सकते है. शुगर मात्रा बढ़ी होने के कारण रोगी की रोग प्रतिबंधक शक्ति कम हो जाती है और उन्हें कोई भी इन्फेक्शन होने की सम्भावना अधिक रहती है. डायबिटीज का निदान अक्सर तब होता है जब मरीज किसी अन्य बीमारी के लिए डॉक्टर के पास पहुँचता है. लिंग से सम्बंधित इन्फेक्शन अधिकतर डायबिटीज के कारण होते है. महिलाओ में योनी में खुजलाहट (वल्वोवजाईनाइटिस) और पुरुषो में लिंग की जगह लाल हो जाना (बैलैनोप्रोस्थाइटिस) अधिकतर डायबिटीज के कारण होता है.
कई दिनों तक डायबिटीज का निदान न होने की स्थिति में मरीजो के जख्म समय से नहीं भरते. न्यूरोपैथी के कारण कई लोगो के पैरो में सूनापन आने के बाद उन्हें डायबिटीज का पता लगता है. यदि डायबिटीज का असर आँखों के परदे पर पड़ जाए (रिटायनोपैथी) तो आँखों के सामने काले धब्बे या रौशनी दिखाई देने लगती है. धमनियों पर असर पड़ने की स्थिति में मरीज को लकवा, हार्ट अटैक या गैंग्रीन जैसी बीमारी होने बाद डायबिटीज का पता लगता है.
डायबिटीज का खतरा किसे अधिक है? – 40 साल से अधिक उम्र होने के बाद सभी को डायबिटीज होने की सम्भावना होती है और उन्हें कमसे कम साल में एक बार शुगर की जाँच करानी चाहिए. यदि आपके परिवार में माता, पिता, भाई या बहन को डायबिटीज है तो सम्भावना अधिक है. कई बच्चो को 12 साल की उम्र में भी डायबिटीज हो जाता है. मोटापा खासकर पेट बड़ा होना डायबिटीज होने की सम्भावना को बढाता है. इसके साथ नियमित व्यायाम का अभाव होने से डायबिटीज की सम्भावना बढ़ जाती है.
डायबिटीज की जाँच कब और किसे करानी चाहिए? – उपरोक्त बताये लक्षणों में से कोई भी लक्षण होने की स्थिति में जल्द से जल्द डायबिटीज की जाँच करानी चाहिए. इसके अलावा जिन लोगो के पारिवारिक सदस्यों में डायबिटीज है, या जिनमे मोटापा या व्यायाम की कमी है उन्हें नियमित रूप से बिना किसी लक्षण के भी जाँच कराते रहना चाहिए. 40 वर्ष से अधिक उम्र के सभी व्यक्तियों कम से कम वर्ष में एक बार शुगर की जाँच करानी चाहिए. डायबिटीज के निदान के लिए जाँच केवल लेबोरेटरी से ही करानी चाहिए. ग्लूकोमीटर द्वारा की गई जाँच सही नहीं होती. लेकिन जाँच न कराने से बेहतर है कम से कम ग्लूकोमीटर से नाप कर यदि जादा शुगर हो तो लेबोरेटरी से जाँच कराना.
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