कान के अंदर पाए जाने वाले पीले रंग के मोम जैसे पदार्थ को “कान का मैल” या “इयरवैक्स” कहा जाता है। यह पदार्थ कान में मौजूद चर्बी युक्त ग्रंथियों द्वारा बनाया जाता है। कान का मैल अक्सर कान से बाहर निकल जाता है। उसके बाद यह खुद कान से बहने लगता है या फिर इसे धो कर साफ करना पड़ता है। यह कान की नली को साफ व नम रखता है और अंदरुनी परत को सुरक्षा प्रदान करता है। कान के मैल की मदद से कान के अंदर पानी नहीं जा पाता व साथ ही कान के अंदर जाने वाली धूल, कीट, फंगी और बैक्टीरिया आदि भी इसमें फंस जाते हैं और कान के अंदर नहीं घुस पाते हैं। कान का मैल बनने लगता है और कान की नली को बंद कर देता है। मैल के कारण कान की नली बंद होना, कम सुनाई देने का सबसे आम कारण होता है।
कान में मैल बनने की रोकथाम नहीं की जा सकती और यह एक सामान्य स्थिति होती है। यदि आपको कान भरा हुआ महसूस होता है, तो ज्यादातर मामलों में इसका कारण कान का मैल ही होता है। कान के मैल को खुद से निकालने की कोशिश नहीं करनी चाहिए, क्योंकि ऐसा करने से कान की अंदर की त्वचा में खरोंच आदि लग सकती है और संक्रमण भी हो सकता है। कान के मैल का इलाज आमतौर पर जल्दी होता है और इसके इलाज में किसी प्रकार का दर्द भी नहीं होता है। इलाज की मदद से कान का सारा मैल निकाल दिया जाता है, जिससे मरीज को सही सुनाई देने लग जाता है। यदि कान में मैल बनने से आपको परेशानी होने लगी है, तो डॉक्टर कुछ साधारण तरीकों की मदद से सुरक्षित रूप से मैल को निकाल देते हैं। जब कान के अंदर से सारा मैल निकाल दिया जाता है, तो आपको सुनने की क्षमता में फर्क दिखाई दे सकता है।
कान का मैल क्या है
यह कान मे मौजूद एक प्राकृतिक अवरोध होता है, जो धूल व बैक्टीरिया आदि को कान के भीतरी हिस्सों में जाने से रोकता है। कान का मैल बहुत चिपचिपा है, इसलिए यह कान के अंदर जाने वाले सूक्ष्म कचरे को इकट्ठा कर लेता है। बिना इस सुरक्षात्मक अवरोध के आपके कान में कई प्रकार के जोखिम बढ़ जाते हैं। भले ही कान के मैल के काफी फायदे हों, लेकिन कई बार इससे कान की नली रुक जाती है, जिससे सुनने में परेशानी होने लग जाती है।
कान में मैल के लक्षण
कान के मैल के लक्षण क्या हैं?
कान में मैल जमा होने से निम्नलिखित प्रकार के लक्षण विकसित होने लग जाते हैं:
- कान में दर्द होना
- कान में कुछ फंसा हुआ या कान भरा हुआ महसूस होना
- कम सुनाई देना जो लगातार बदतर होता जा रहा है।
- कान बजना या कान में अजीब प्रकार की आवाज सुनाई देना (टिनिटस)
- कान में खुजली होना
- कान बहना व बदबू आना
- कान में संक्रमण हो जाना
डॉक्टर को कब दिखाना चाहिए?
यदि आपके कान में मैल भर गया है और आप मैल को निकाल नहीं पा रहे हैं, तो ऐसी स्थिति में आपको डॉक्टर की मदद ले लेनी चाहिए। इसके अलावा यदि आपके कान में मैल जमा होने के कारण आपको कुछ अन्य लक्षण महसूस होने लग गए हैं, तो भी डॉक्टर को दिखा लेना चाहिए। इसके निम्नलिखित लक्षण हो सकते हैं:
- कान से द्रव बहना
- कान में दर्द होना
- बुखार
- कान से मैल साफ करने के बाद बहरापन होना
कान में मैल के कारण व जोखिम कारक
कान में मैल क्यों होता है?
ईयरवैक्स कान के अंदर ही बनता है, जो कान को साफ रखता है और रोगाणुओं से बचाता है। यह आमतौर पर बिना कोई हानि पहुँचाए कान से निकलता रहता है, लेकिन कई बार कान में अधिक मैल बन जाने के कारण यह कान की नली को बंद कर देता है।
कई बार कान के परदे के आगे मैल जम जाता है ऐसा अक्सर तब होता है, जब कोई व्यक्ति अंदर कुछ डालकर खुजली करने की कोशिश करता है, जैसे रुई का टुकड़ा, पिन या चाबी आदि। इन चीजों से खुजली करने से कान की नली में मौजूद मैल कान की नली में अंदर की तरफ चला जाता है।
कान में मैल होने का खतरा कब बढ़ता है?
कुछ अन्य कारक भी हैं, जिनके कारण कान में बहुत अधिक मैल जमा होने के जोखिम बढ़ जाते हैं। किसी भी व्यक्ति के कान में मैल बनने लग जाता है। हालांकि निम्नलिखित लोगों में यह समस्या होने के जोखिम अधिक हो सकते हैं:
- जो लोग कान में लगाने वाली मशीन या अन्य उपकरणों का इस्तेमाल करते हैं।
- जिन लोगों को कान में रुई या अन्य कोई चीज डालकर खुजली करने की आदत होती है।
- विकासात्मक अपंगता वाले लोग (कान ठीक से विकसित ना हो पाना)
- जिन लोगों के कान की नली कुछ इस तरह बनी हो, जिसमें से कान का मैल ठीक से निकल नहीं पाता है।
- प्राकृतिक रूप से कठोर या सूखा मैल बनना।
- कान की नली काफी संकुचित या नली में अधिक बाल होना।
कान के मैल से बचाव
कान के मैल की रोकथाम कैसे की जाती है?
कुछ लोगों में प्राकृतिक रूप से कान का मैल बनता रहता है। कान में मैल अधिक हो जाने पर अधिक समस्या होने लग जाती है, इसलिए इन लोगों को बार-बार इलाज करवाने की आवश्यकता पड़ती है। काम में मैल बनने से रोकने का कोई तरीका अभी तक पता नहीं चल पाया है। हालांकि कुछ मरीजों को डॉक्टर ईयर ड्रॉप दवा का इस्तेमाल करने की सलाह देते हैं, जिससे कान का मैल नरम रहता है।
कान में मौजूद मैल को अपनी उंगली या फिर किसी अन्य चीज से साफ करने की कोशिश नहीं करनी चाहिए, क्योंकि ऐसा करने से स्थिति और बदतर बन सकती है। यदि आपको कुछ ऐसी शारीरिक समस्याएं हैं, जिनके कारण कान का मैल अधिक बनने लगता है (जैसे एक्जिमा), तो ऐसी स्थिति में आप कान का मैल बनने की रोकथाम नहीं कर सकते हैं। लेकिन अगर आपको ऐसी कोई शारीरिक समस्या नहीं हैं, तो आप कान में मैल बनने से रोकथाम कर सकते हैं।
हफ्ते में एक बार किसी टॉपिकल एजेंट (लगाने वाली दवा) का इस्तेमाल करने से कुछ मदद मिल सकती है। आपको नियमित रूप से हर 6 महीने में एक बार अपने काम की सफाई करवा लेनी चाहिए। डॉक्टर आपको कान में रुई आदि का इस्तेमाल करने से मना कर सकते हैं। क्योंकि रुई आदि को कान में डालने से मैल नली के अंदर की तरफ चला जाता है।
कान के मैल का परीक्षण
कान के मैल का परीक्षण कैसे किया जाता है?
परीक्षण के दौरान डॉक्टर कान की जांच करने वाले उपकरण का इस्तेमाल करते हैं, जैसे ऑरीस्कोप (Auriscope) या ओटोस्कोप (Otoscope)। परीक्षण के दौरान डॉक्टर कान का मैल बनने की जांच कर सकते हैं और पता लगाएंगे कि इससे क्या प्रभाव पड़ रहे हैं। कान में अधिक मैल की जांच करने के लिए डॉक्टर कुछ साधारण टेस्ट ही करते हैं।
कान के मैल का इलाज
कान के मैल का इलाज कैसे करें?
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यदि कान में मैल होने से किसी प्रकार की समस्या नहीं हो रही है, तो इसका इलाज करवाने की जरूरत नहीं होती है। कान अपने आप से साफ होते हैं और कान का मैल अपने आप बाहर निकल जाता है, इसलिए मैल को खुद से नहीं निकालना चाहिए। यदि मैल कान के बाहर आ गया है, तो इसे किसी नरम कपड़े के साथ साफ कर देना चाहिए। कभी-कभी कान का मैल अंदर ही जमा हो जाता है, खासतौर पर ऐसा तब होता है जब मैल अधिक सूखा हो या व्यक्ति की कान की नली अधिक संकुचित हो या नली में अधिक बाल हों। इसके अलावा कान में मशीन लगाने, रुई या अन्य कोई चीज डालने के कारण भी कान के अंदरुनी हिस्से में मैल जमा होने लग जाता है।
रुई के साथ कान को साफ करने से भी कान की नली क्षतिग्रस्त हो जाती है। क्योंकि रुई कान की नली में पाया जाने वाला प्राकृतिक तेल सोख लेती है, जिसके कारण खुजली होने लगती है। जब नहाने या स्विमिंग आदि करने के दौरान पानी कान के अंदर जाता है, तो उससे कान का मैल फैलने लग जाता है। कान में मैल फैलने से कान बंद होने जैसा महसूस होता है और टिनिटस रोग होने की संभावना भी बढ़ जाती है।