18 हनुमान मंत्र जाप के फायदे

इस लेख में आप हनुमान जी के दिव्य मंत्र के जाप का तरीका और फायदे जानेंगे। हनुमान मंत्र के जाप से इच्छित लाभ पाने के लिए कुछ बातों का ध्यान रखें।

  • नहा-धोकर स्वच्छ शरीर से साफ़ कपड़े पहनकर बैठे।
  • मन्त्र जाप जमीन पर लाल आसन बिछाकर या स्वच्छ आसन पर बैठकर करें।
  • मन्त्र जप करते समय पीठ सीधी मतलब मेरुदंड सीधा हो।
  • रुद्राक्ष या तुलसी की माला से जाप करें।
  • इन मंत्रो का नियमित जाप भी कर सकते हैं। 108 दानो की माला से कम से कम एक माला का जाप अवश्य करें। समय की कमी हो तो 11, 27, 51 बार भी जप कर सकते हैं, लेकिन इससे फल भी उसी अनुपात में होगा।
  • मन्त्र जाप की सफलता के लिए ब्रह्मचर्य का पालन करें। मांसाहारी और तामसिक भोजन न करें।
  • सम्भव हो तो हनुमान मंदिर में जाप करें। हनुमान जी की मूर्ति के समक्ष जाप करना शीघ्र फलदायी होता है।
  • जप शुरू करते समय देशी घी, चमेली अथवा तिल के तेल का दीपक जलाकर रख लें। जाप की अवधि तक यह जलता रहना चाहिए।

हनुमान मंत्र के फायदे

1) हनुमान मूल मंत्र 

ॐ हनुमते नमः के फायदे – जीवन की विघ्न-बाधा दूर कर सफलता प्राप्ति के लिए, शारीरिक शक्ति, दमखम और सामर्थ्य वृद्धि के लिए। अच्छे उद्देश्य से किये जाने वाले किसी भी कार्य की सिद्धि के लिए इस मन्त्र का जाप फलदायी है।

2) हं हनुमते रुद्रात्मकाय हुं फट् l

फायदा – असीमित शक्ति वाला यह हनुमान मंत्र एक दिव्यमंत्र है. इस मंत्र के जाप का तत्काल प्रभाव दिखता है. यह मंत्र आपको हनुमान जी के कृपा की अद्भुत शक्ति प्रदान करता है.

3) ॐ नमो भगवते आंजनेयाय महाबलाय स्वाहा l

लाभ – इस हनुमान मंत्र के 21,000 जाप से बीमारी, भूत-प्रेत बुरी आत्माओं का असर और जीवन के कष्टों, बाधाओं का निराकरण हो जाता है.

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4) हनुमान गायत्री मंत्र – ॐ आञ्जनेयाय विद्महे वायुपुत्राय धीमहि। तन्नो हनुमत् प्रचोदयात्

लाभ – हनुमान गायत्री मंत्र के नियमित जाप से ऐसी अद्भुत उर्जा उत्पन्न होती है जोकि संकटों से रक्षा प्रदान करती है. यह मन्त्र साहस और ज्ञान में वृद्धि कर आपको सबल बनाता है.

5) मनोजवम् मारुततुल्यवेगम् जितेन्द्रियम् बुद्धिमताम् वरिष्ठम्।
    वातात्मजम् वानरयूथमुख्यम् श्रीरामदूतम् शरणम् प्रपद्ये॥

(डॉ. नुस्खे )
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लाभ– भगवान राम और श्री हनुमान जी का आशीर्वाद और अनुग्रह प्राप्त करने के लिए प्रतिदिन की पूजा में इस मंत्र को भी स्मरण करें.

6) ॐ ऐं ह्रीं हनुमते रामदूताय लंकाविध्वंसनाय अंजनी गर्भ संभूताय शाकिनी डाकिनी डाकिनी
    विध्वंसनाय किलिकिलि बुबुकारेण विभिषणाय हनुमद्देवाय ॐ ह्रीं श्रीं हौं हाँ फट् स्वाहा।।

लाभ – दुष्ट आत्माओं के भय से मुक्ति पाने के लिए और शक्ति प्राप्ति हेतु इस अद्भुत हनुमान मंत्र का जाप फलदायी सिद्ध होता है. नकारात्मकता चाहे गृह-क्लेश से हो, नौकरी-व्यवसाय से हो, पढाई या जीवन में असफलता से उत्पन्न हुई हो, सभी का निराकरण करने में यह मन्त्र जप प्रभावी है.

7) हनुमान बीज मंत्र – ॐ ऐं भ्रीम हनुमते,श्री राम दूताय नम:

लाभ – इस शक्तिशाली हनुमान जी का बीज मंत्र के नियमित जाप से हनुमान जी की दया-दृष्टि, आशीर्वाद और अनुग्रह प्राप्त होता है. इसके अतिरिक्त कोर्ट-केस में विजय, लम्बे चल रहे केस की तेज कार्यवाही और अनुकूल परिणाम के लिए दिन में दो बार इस हनुमान मंत्र का 1008 बार जाप करें. अदालत जाने से पहले हनुमान मंदिर भी अवश्य जायें. आप अनुभव करेंगे कि कार्य में प्रगति हो रही है और झंझट से मुक्ति मिल जाएगी.

8) आंजनेय मंत्र :  ॐ श्री वज्रदेहाय रामभक्ताय वायुपुत्राय नमोsस्तुते l

लाभ – नौकरी और व्यवसाय में नए अवसरों की प्राप्ति के लिए इस मंत्र का जप करें. नौकरी में समस्याएँ हों, नयी नौकरी की तलाश में हों, परीक्षा की तैयारी करने वाले विद्यार्थी हों या चाहे जॉब प्रमोशन (प्रोन्नति) की आशा में हो. आंजनेय मंत्र का प्रतिदिन सुबह 11 बार जप करें. मंत्र जाप गुरुवार के दिन से शुरू करें.

9) अंजनीगर्भ संभूत कपीन्द्र सचिवोत्तम । रामप्रिय नमस्तुभ्यं हनुमन् रक्ष सर्वदा ॥

लाभ – स्वयं की रक्षा और इच्छित लाभ की प्राप्ति हेतु.

10) मर्कटेश महोत्साह सर्वशोक विनाशन । शत्रून संहर मां रक्षा श्रियं दापय मे प्रभो ll

लाभ – धन, समृद्धि और संपत्ति की प्राप्ति के लिए

11) ॐ पूर्वकपिमुखाय पञ्चमुख हनुमते टं टं टं टं टं सकल शत्रु सहंरणाय स्वाहा ।

लाभ – गम्भीर संकट और शत्रुओं से मुक्ति पाने के लिए, अपने आस- पास और जीवन की नकारात्मक शक्तियों को दूर करने, के लिए इस हनुमान मंत्र का जाप करें.

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12) ॐ दक्षिणमुखाय पच्चमुख हनुमते करालबदनाय
      नारसिंहाय ॐ हां हीं हूं हौं हः सकलभीतप्रेतदमनाय स्वाहाः।

    प्रनवउं पवनकुमार खल बन पावक ग्यानधन।
      जासु हृदय आगार बसिंह राम सर चाप घर।।

लाभ – प्रेत बाधा मुक्ति, डर-भय दूर करने के लिए हनुमान मंत्र. प्रतिदिन स्वच्छ शरीर और मन से विश्वासपूर्वक 108 बार जाप करें, अवश्य लाभ होगा.

13) महाबलाय वीराय चिरंजिवीन उद्दते। हारिणे वज्र देहाय चोलंग्घितमहाव्यये l

लाभ – मनोकामना की पूर्ति के लिए हर रोज के माला का जाप करें.

14) ऊँ नमो हनुमते रुद्रावताराय सर्वशत्रुसंहारणाय सर्वरोग हराय सर्ववशीकरणाय रामदूताय स्वाहा l

लाभ – इस मन्त्र के जप से शत्रुओं से रक्षा, शत्रु विजय, सभी रोग के निवारण का फल प्राप्त होता है.

15) ऊँ नमो हनुमते आवेशाय आवेशाय स्वाहा l

लाभ – कर्ज से मुक्ति और आर्थिक समस्याओं से छुटकारा पाने के लिए प्रतिदिन एक माला का जाप 45 दिनों तक करें.

16) ऊँ नमो हनुमते रुद्रावताराय भक्तजनमन: कल्पना-कल्पद्रुमाय l
     दुष्टमनोरथस्तम्भनाय प्रभंजन-प्राप्रियाय ll
     महाबलपराक्रमाय महाविपत्तिनिवारणाय l
     पुत्रपौत्रधन-धान्यादि विविधसम्पतप्रदाय रामदूताय स्वाहा ll

जिस घर में इस हनुमान मंत्र का नियमित जाप होता है, वहाँ धन-वैभव का आगमन होता है. अगर पैसे की कमी परिवार की ख़ुशी में बाधक बन रही है तो इस मंत्र का जाप करें. यह मंत्र मंगलवार और शनिश्वरी अमावस्या के दिन अवश्य स्मरण करें.

मंगलवार या शनिवार को स्नान के बाद श्री हनुमान मंदिर में स्थित चोला चढ़ी श्री हनुमान जी की प्रतिमा पर सिन्दूर या लाल चन्दन, चमेली का तेल, फूल, अक्षत, जनेऊ व नैवेद्य (भोग) चढ़ाकर ऊपर लिखा हनुमान मंत्र लाल आसन पर बैठ सुख-समृद्धि की कामना से बोलें. मंत्र स्मरण के बाद श्री हनुमान की गुग्गल धूप व दीप से आरती कर प्रसाद ग्रहण करें. श्री हनुमान के चरणों से थोड़ा सा सिंदूर लाकर घर के द्वार या देवालय में स्वस्तिक बनाएं. हनुमान जी की कृपा होगी.

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17) ऊँ नमो हनुमते रुद्रावताराय सव्रग्रहान् भूतभविष्यद्वर्तमानान् समीपस्थान
     सर्वकालदुश्टबुद्धीनुच्चाटयोच्चाटय परबलानि क्षोभय क्षोभय
      मम सर्वकार्याणि साधय साधय स्वाहा l

लाभ – शत्रु की कुबुद्धि – दुर्बुद्धि को ठीक करने हेतु इस मंत्र का जाप करें.

18) हं हनुमते नम: l

ॐ हं हनुमते नमः मंत्र के फायदे – भय और डर के नाश के लिए इस मंत्र का विश्वासपूर्वक जाप शुरू कर दें. अवश्य लाभ होगा.

19) कार्य सिद्धि हनुमान मंत्र – हनुमान मंदिर या हनुमान जी के चित्र के सामने बैठकर इस मंत्र का 108 बार जाप करें। किसी भी मंगलवार या शनिवार से इस मंत्र का जाप करना शुरू करें। अगर किसी बड़े कार्य की सिद्धि के लिए इस मंत्र का जाप करना है तो प्रतिदिन 1100 बार इस हनुमान मंत्र का जाप 40 दिन तक करें।

असाध्य साधक स्वामिन,
असाध्य तव किंवद I
राम दूत कृपा सिंधो,
मत्कार्यं साध्यप्रभो II

सम्पूर्ण बजरंग बाण का पाठ

दोहा॥

निश्र्चय प्रेम प्रतीति ते, बिनय करै सनमान ।
तेहि के कारज सकल सुभ, सिद्ध करै हनुमान ॥

॥चौपाई॥

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जय हनुमंत संत-हितकारी ।
सुनि लीजै प्रभु बिनय हमारी ॥

जन के काज बिलंब न कीजै ।
आतुर दौरि महासुख दीजै ॥

जैसे कूदि सिंधु के पारा ।
सुरसा बदन पैठि बिस्तारा ॥

आगे जाय लंकिनी रोका ।
मारेहु लात गई सुरलोका ॥

जाय विभीषण को सुख दीन्हा ।
सीता निरखि परम-पद लीन्हा ॥

बाग उजारि सिंधु महं बोरा ।
अति आतुर जमकातर तोरा ॥

अछय कुमार मारि संहारा ।
लूम लपेटि लंक को जारा ॥

लाह समान लंक जरि गई ।
जय जय धुनि सुरपुर नभ भई ॥

अब बिलम्ब केहि कारन स्वामी ।
कृपा करहु उर अंतरजामी ॥

जय जय लखन प्रान के दाता ।
आतुर होइ दुख करहु निपाता ॥

जय हनुमान जयति बल-सागर ।
सुर-समूह-समरथ भट-नागर ॥

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ॐ हनु हनु हनु हनुमंत हठीले ।
बैरिहि मारू ब्रज की कीले ॥

गदा बज्र लै बैरिहिं मारो।
महाराज प्रभु दास उबारो॥

ॐकार हुंकार महाप्रभु धावो।
बज्र गदा हनु विलम्ब न लावो॥

ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं हनुमंत कपीसा।
ॐ हुं हुं हुं हनु अरि उर-सीसा ॥

सत्य होउ हरि शपथ पायके।
रामदूत धरु मारु धाय के॥

जय जय जय हनुमन्त अगाधा।
दु:ख पावत जन केहि अपराधा॥

पूजा जप तप नेम अचारा।
नहिं जानत कछु दास तुम्हारा॥

वन उपवन मग गिरि गृह माहीं।
तुमरे बल हम डरपत नाहीं॥

पाय परौं कर जोरि मनावों।
यह अवसर अब केहि गोहरावों॥

जय अंजनि कुमार बलवंता।
संकरसुवन बीर हनुमंता ॥

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बदन कराल काल-कुल-घालक ।
राम-सहाय सदा प्रतिपालक ॥

भूत, प्रेत, पिसाच, निसाचर ।
अगिन बेताल काल मारी मर ॥

इन्हें मारू, तोहि सपथ राम की ।
राखु नाथ मरजाद नाम की ॥

जनकसुता-हरि-दास कहावौ ।
ता की सपथ, बिलंब न लावौ ॥

जय-जय-जय-धुनि होत अकासा ।
सुमिरत होय दुसह दुख नासा ॥

चरन पकरि, कर जोरि मनावौ ।
यहि औसर अब केहि गोहरावौं ॥

उठु, उठु, चलु, तोहि राम-दोहाई ।
पायं परौं, कर जोरि मनाई ॥

ॐ चं चं चं चं चपल चलंता ।
ॐ हनु हनु हनु हनु हनु-हनुमंता ॥

ॐ हं हं हाँक देत कपि चंचल ।
ॐ सं सं सहमि पराने खल-दल ॥

अपने जन को तुरत उबारौ।
सुमिरत होय अनंद हमारौ ॥

यह बजरंग-बाण जेहि मारै ।
ताहि कहौ फिरि कौन उबारै ॥

पाठ करै बजरंग बाण की ।
हनुमत रच्छा करै प्रान की ॥

यह बजरंग-बाण जो जापै।
तासों भूत-प्रेत सब कापै ॥

धूप देय अरु जपै हमेसा ।
ता के तन नहीं रहै कलेसा ॥

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॥दोहा॥

प्रेम प्रतीतिहिं कपि भजै, सदा धरै उर ध्यान।
तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करै हनुमान॥

चालीसा हनुमान जी की 

॥दोहा॥

श्रीगुरु चरन सरोज रज निज मनु मुकुरु सुधारि ।
बरनउँ रघुबर बिमल जसु जो दायकु फल चारि ॥

बुद्धिहीन तनु जानिके सुमिरौं पवन-कुमार ।
बल बुधि बिद्या देहु मोहिं हरहु कलेस बिकार ॥

॥चौपाई॥

जय हनुमान ज्ञान गुन सागर ।
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर ॥१॥

राम दूत अतुलित बल धामा ।
अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा ॥२॥

महाबीर बिक्रम बजरंगी ।
कुमति निवार सुमति के संगी ॥३॥

कंचन बरन बिराज सुबेसा ।
कानन कुण्डल कुंचित केसा ॥४॥

हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै ।
काँधे मूँज जनेउ साजै ॥५॥

शंकर सुवन केसरीनन्दन ।
तेज प्रताप महा जग बन्दन ॥६॥

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विद्यावान गुनी अति चातुर ।
राम काज करिबे को आतुर ॥७॥

प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया ।
राम लखन सीता मन बसिया ॥८॥

सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा ।
बिकट रूप धरि लंक जरावा ॥९॥

भीम रूप धरि असुर सँहारे ।
रामचन्द्र के काज सँवारे ॥१०॥

लाय संजीवन लखन जियाये ।
श्रीरघुबीर हरषि उर लाये ॥११॥

रघुपति किन्ही बहुत बड़ाई ।
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई ॥१२॥

सहस बदन तुम्हरो जस गावैं ।
अस कहि श्रीपति कण्ठ लगावैं ॥१३॥

सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा ।
नारद सारद सहित अहीसा ॥१४॥

जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते ।
कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते ॥१५॥

तुम उपकार सुग्रीवहिं कीह्ना ।
राम मिलाय राज पद दीह्ना ॥१६॥

तुम्हरो मन्त्र बिभीषन माना ।
लंकेश्वर भए सब जग जाना ॥१७॥

जुग सहस्र जोजन पर भानु ।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू ॥१८॥

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प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं ।
जलधि लाँघि गये अचरज नाहीं ॥१९॥

दुर्गम काज जगत के जेते ।
सुगम अनुग्रह तुह्मरे तेते ॥२०॥

राम दुआरे तुम रखवारे ।
होत न आज्ञा बिनु पैसारे ॥२१॥

सब सुख लहै तुम्हारी सरना ।
तुम रच्छक काहू को डर ना ॥२२॥

आपन तेज सम्हारो आपै ।
तीनों लोक हाँक तें काँपै ॥२३॥

भूत पिसाच निकट नहिं आवै ।
महाबीर जब नाम सुनावै ॥२४॥

नासै रोग हरै सब पीरा ।
जपत निरन्तर हनुमत बीरा ॥२५॥

संकट तें हनुमान छुड़ावै ।
मन क्रम बचन ध्यान जो लावै ॥२६॥

सब पर राम तपस्वी राजा ।
तिन के काज सकल तुम साजा ॥२७॥

और मनोरथ जो कोई लावै ।
सोई अमित जीवन फल पावै ॥२८॥

चारों जुग परताप तुह्मारा ।
है परसिद्ध जगत उजियारा ॥२९॥

साधु सन्त के तुम रखवारे ।
असुर निकन्दन राम दुलारे ॥३०॥

अष्टसिद्धि नौ निधि के दाता ।
अस बर दीन जानकी माता ॥३१॥

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राम रसायन तुम्हरे पासा ।
सदा रहो रघुपति के दासा ॥३२॥

तुह्मरे भजन राम को पावै ।
जनम जनम के दुख बिसरावै ॥३३॥

अन्त काल रघुबर पुर जाई ।
जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई ॥३४॥

और देवता चित्त न धरई ।
हनुमत सेइ सर्ब सुख करई ॥३५॥

संकट कटै मिटै सब पीरा ।
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा ॥३६॥

जय जय जय हनुमान गोसाईं ।
कृपा करहु गुरुदेव की नाईं ॥३७॥

जो सत बार पाठ कर कोई ।
छूटहि बन्दि महा सुख होई ॥३८॥

जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा ।
होय सिद्धि साखी गौरीसा ॥३९॥

तुलसीदास सदा हरि चेरा ।
कीजै नाथ हृदय महँ डेरा ॥४०॥

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॥दोहा॥

पवनतनय संकट हरन मंगल मूरति रूप ।
राम लखन सीता सहित हृदय बसहु सुर भूप ॥

हनुमान चालीसा के लेखक गोस्वामी तुलसीदास जी हैं. हनुमान चालीसा की भाषा अवधी है और इसमें 40 चौपाईयाँ, 2 दोहे हैं. हनुमान चालीसा कब लिखा गया इसके सम्बन्ध में 2 मान्यतायें सर्वाधिक प्रचलित हैं.

1. पहली यह कि एक बार तुलसीदास जी को अकबर ने बंदी बना लिया था. उस जेल प्रवास में तुलसीदास जी ने हनुमान चालीसा लिखी. तुलसीदास उस समय 63 वर्ष के थे. तुलसीदास जी का जन्म सन 1511 माना जाता है. अतः यह कहा जा सकता है कि हनुमान चालीसा सन 1574 में लिखी गयी.

2. दूसरी मान्यता के अनुसार तुलसीदस जब 11 वर्ष के थे तो हनुमान जी ने उन्हें दर्शन दिए थे. हनुमान जी और तुलसीदास के बीच जो कुछ वार्तालाप हुआ, हनुमान चालीसा उसी का एक अंश है. इस मान्यता के अनुसार हनुमान चालीसा 1522 में लिखी गयी.

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