जरूरी नहीं है कि शरीर में दिखने वाले हर लाल दाने, एलर्जी हो। ये हर्पीस (Herpes) के भी लक्षण हो सकते हैं। हर्पीस जोस्टर वायरस और सिम्प्लेक्स वायरस (एचएसवी) के कारण होने वाला एक रोग है, जो महिला या पुरूष, किसी को भी प्रभावित कर सकता है। इसलिए समय रहते इसका इलाज बहुत जरूरी है। वैसे तो, अधिकतर लोग इसके इलाज के लिए एलोपैथिक दवांदयों पर जाेर देते हैं। लेकिन हर्पीस का उपचार, आयुर्वेद चिकित्सा द्वारा भी किया जा सकता है। जानें हर्पीस का आयुर्वेदिक ट्रीटमेंट क्या है। लेकिन इससे पहले आप यह जाने कि हर्पीस कितने प्रकार के होते हैं।
हपीज दो प्रकार के होते हैं
- हर्पीस सिंप्लेक्स वायरस टाइप 1 (एचएसवी-1)/ओरल हर्पीस
- हर्पीस सिंप्लेक्स वायरस टाइप 2 (एचएसवी-2)/जेनिटल हर्पीस
एचएसवी-1 को ओरल हर्पीज भी कहते हैं। जिसमें मुंह में घाव या पानी वाले छोले हो जाते हैं। जबकि एचएसवी-2 को जेनिटल हर्पीस (Genital herpes)कहते हैं। इसमें शरीर में लेकर जाननांगों तक की त्वचा प्रभावित होती है। यह पानी भरे दाने शरीर के अन्य हिस्सों में भी फैलने लगते हैं। इसलिए, इस सकंम्रण का समय रहते इलाज बहुत जरूरी है। इसके लक्षण 10 दिनों से लेकर महीनों तक रह सकते हैं। ऐसे में इन पानी भरे दोनों को न हाथ लगाएं और न ही, इन्हें फोड़ने की गलती करें। समय पर इलाज न होने पर यह जानलेवा भी साबित हो सकता है।
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हर्पीस के सामान्य लक्षण
वायरस के संपर्क में आने के 2 से 20 दिन के बाद लक्षण नजर आने लगते हैं।
हर्पीस का सबसे पहला लक्षण हैं कि इसमें पानी भरे दाने निकलने लगने हैं। जो धीरे-धीरे शरीर के अन्य हिस्सों में भी फैलने लगते हैं।
इसकी वजह से शरीर में झुनझुनी, खुजली और जलन जैसी समस्याएं हो सकती है।
थकान और अस्वस्थ महसूस करना।
हर्पीज के कारण
यह संक्रमण व्यक्ति में निम्नलिखित कारणों से हो सकता है, जैसे कि
- पहले से संक्रमित व्यक्ति के साथ सेक्शुअल संपर्क में आने पर
- इंफेक्टेड होने पर बिना कंडोम के संबंध बनाना
- ओरल सेक्स के दौरान
- रोग प्रतिरोधक क्षमता का कमजोर होना
- एस से ज्यादा लोगों के साथ संबंध बनाना
- कम उम्र में सैक्स करना
- पहले कभी चिकनपॉक्स होने के कारण
- वायरल इंफेक्शन के कारण
- हाइजीन में कमी होने के कारण
- कमजाेर रोग प्रतिरोधक क्षमता के कारण।
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हर्पीस के लक्षण
- प्राइवेट पार्ट के चारो ओर घाव वाले दाने हाे जाते हैं।
- यूरिन के दोरान तेज दर्द महसूस करना।
- वे 2-6 सप्ताह तक रह सकते हैं।
- यह घाव 2 से 3 सप्ताह तक रह सकते हैं।
- ओरल हर्पीज के कारण मुंह में फफोले हो सकते हैं।
- कभी-कभी बुखार घाव या कोल्ड सोर की समस्या हो जाती है।
- यह छाले आपके चेहरे पर भी नजर आ सकते हैं।
- घाव आमतौर पर 2-3 सप्ताह तक रह सकते हैं।
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आयुर्वेद के अनुसार हर्पीस
मानव शरीर में होने वाले रोगों का आयुर्वेद में अलग-अलग कारण होता है। तो आइए, हर्पीस को देखते हैं, आयुर्वेद की नजर से।
वात – आयुर्वेद केअनुसार, वात दोष के कारण हुए हर्पीस के निन्मलिखित लक्षण हो सकते हैं, जैसे कि दर्द, चक्कर, अपच की समस्या, खांसी, आंखों में जलन महसूस करना और भूंख में कमी आदि। इसका आयुर्वेद में उस दोष के अनुसार इलाज किया जाता है।
पित्त – बुखार आने के साथ, शरीर के अन्य हिस्सों में रैशेज जैसे पड़ना और लाल रंग के फोड़े फुलसी पित्त दोष के कारण हर्पीज की समस्या की वजह हो सकते हैं।
कफ – ऐसा तब होता हे जब आपका कफ बिगड़ जाता है, जब आपके शरीर में जकड़न, संक्रमण दर्द और बुखार बना रहाता है।
ग्रंथि विसर्प – हर्पीस का यह कारण व्यक्ति में तब होता है, जब उनमें वात और कफ दोनों का अंसतुलन देखा जाता है। जिस वजह से उस ग्रंथि का आकार धीरे-धीरे बढ़ने लगता है।
त्रिदोष – जब किसी में हर्पीस बहुत तेजी से फैलता है, तो कारण यह त्रिदोष में आया अंसतुलन हाे सकता है। यह इतनी तेजी से फैलता है कि कई बार उपचार मुश्किल हो जाता है और हालत भी गंभीर स्थिति में हो सकती है।
अग्नि विसर्प दोष – जब रोगी में वात और कफ, यह दोनों दोष के लक्षण दिखते हैं, तो उनमें अग्नि विसर्प दोष के कारण हर्पीस की समस्या हो सकती है। इसमें दोष वाले व्यक्ति में हर्पीस होने के निम्नलिखित लक्षण दिख सकते हैं, जैसे कि बुखार, उल्टी, चक्कर और कमजाेरी महसूस होना आदि।
हर्पीस का आयुर्वेदिक ट्रीटमेंट
अंसतुलित दोष को संतुलित किया जाता है
आयुर्वेद में हर्पीस के उपचार के लिए पहले जिन दोषों के कारण व्यक्ति काे यह समस्या हुई है। उसे संतुलित किया जाता है। इन दोषों केा ठीक करने के लिए आहार में बदलाव करने के साथ लेप के रूप में कुछ जड़ी-बूटियों का इस्तेमाल किया जाता है। कुछ डायटरी स्पलिमेंट भी दिया जाता है। इसमें रोगी की त्वचा, खून और लिम्फ (lymph) तीनों को डिटॉक्ट और हर्बल जड़ी-बूटियों के माध्यम से शुद्व किया जाता है। इससे रक्त संचार तेज और असंतुलित टॉक्सिन को ठीक करता है।
इसमें भी सबसे पहले हर्बल ट्रीटमेंट के माध्यम से रक्त और लसीका को डिटॉक्सीफाई किया जाता हैं, जो विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालता है। इससे वात दोष दूर होता है और सूजन, जलन और झुनझुनी जैसी समस्या कम होती है।
बूस्टिंग बॉडी इम्यूनिटी और बॉडी रिज्यूविनेशन
आयुर्वेद के अनुसार कोई भी बीमारी न केवल एक विशेष अंग को प्रभावित करती है, बल्कि कहीं न कहीं पूरे शरीर को प्रभावित करती है। हरपीज एक प्रकार का वायरस है और कई लोगों में इसके होने का करण कमजोर रोग प्रतिरोधक क्षमता होती है। शरीर के दाेषों को पहले स्टेप में संतुलित करने के बाद शरीर को रिजूवनेट (Rejuvenate) किया जाता है। फिर रसायन विधि द्वारा शरीर की इम्यूनिटी बढ़ाई जाती है। ताकि शरीर हर्पीस सहित अन्य किसी भी बीमारी से लड़ने के लिए तैयार रहे।
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प्रभावित त्वचा भागों के लिए आयुर्वेदिक उपचार – हर्पीस का आयुर्वेदिक ट्रीटमेंट के लिए, इन दोनों प्रॉसेज यानि कि शरीर के दाेनों दोषों को संतुलन और बाॅडी को रिजूवनेट करने के बाद, शरीर के उस अंग पर ध्यान दिया जाता है। जहां पर हर्पीस की समस्या हो। इस उपचार स्टानिका चिकित्सा कहा जाता है। जननांग से प्रभवित हिस्से में चंदन, गुलाब और नीम आदि के पाउडर से तैयार हर्बल पेस्ट को लगाकर, प्रभावित त्वचा को राहत देने के साथ धीरे-धीरे ठीक भी किया जाता है।
आयुर्वेद के अनुसार डायट – हर्पीस का आयुर्वेदिक ट्रीटमेंट करने के लिए डायट की तरफ भी विशेष ध्यान दिया जाता है। हमारे शरीर के प्रत्येक अंग का अलग-अलग कार्य और भूमिका है। इसलिए शरीर को अलग-अलग प्रकार के पोषक तत्वों की जरूरत होती है। यदि आपके शरीर को जरूरत के अनुसार सभी पोषक तत्व नहीं मिलते हैं य उन कमियों को जल्दी पूर नहीं किया जाता है, तो आप कुपोषित हो सकते हैं। जिस कारण भी इम्यूनिटी सिस्टम भी कमजाेर होने लगता है। इसलिए आयुर्वेद में उन जरूरतों को समझते हुए अलग-अलग दोषों के अनुसार खानपान की सलाह दी जाती है। पित दोष को संतुलन करने के लिए फायदेमंद खाद्य पदार्थ हैं, ताजी सब्जियां, फल, बींस, मछली, अंडे और चिकन।
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आयुर्वेद के अनुसार नींद की उचार में भूमिका
किसी भी बीमारी को ठीक करने के लिए और शरीर की अच्छी इम्यूनिटी के लिए अच्छे खानपान के साथ अच्छी नींद भी लेना बहुत जरूरी है। नींद हमारे मन को तरोताजा करती है। अच्छी नींद हमारे शरीर के इम्यून को बढ़ाने वाले हाॅर्मोन को बनाते हैं। उपचार के साथ रोगी को 8 घंटे से अधिक नींद लेने की सलाह दी जाती है।
तनाव को कम किया जाता है – दाद होने के कई कारणों में तनाव भी एक है। सबसे अधिक बार यह समसया लोगों में मानसिक तनाव के कारण होता है। तनाव को कम करने के लिए व्यायाम और अच्छी नींद के साथ विभिन्न तरह के व्यायाम किए जा सकते हैं। 30 मिनट का नियमित एरोबिक व्यायाम जैसे पैदल चलना प्रतिरक्षा को बढ़ाता है।
अगर आपको हर्पीज की समस्या लगातार बनी रहती है, तो आप आयुर्वेदिक ट्रीटमेंट को अपना सकती हैं। ये और भी कई रोगों के इलाज के लिए प्रभावकारी है।
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दूसरे हाथ का भी करें प्रयोग
अगर आप फिंगर सेक्स का मज़ा बढ़ाना चाहते हैं तो फिंगरिंग के दौरान आप दूसरे हाथ का प्रयोग करना न भूलें। इसके साथ ही किसिंग आदि से भी आपका आनंद दोगुना हो सकता है।
लुब्रीकेंट से मजा हो डबल
फिंगरिंग (fingering) के दौरान भी लुब्रीकेंट का प्रयोग करना न भूले। लुब्रीकेंट का प्रयोग आपके मज़े को बढ़ा सकता हैऔर योनि में ब्लीडिंग या दर्द जैसी समस्याएं भी नहीं होंगी। अपनी उंगली में लुब्रिकेट ले कर फिंगरिंग सेक्स (fingering sex) के लिए प्रयोग करें। अगर आप योनि और गुदा में फिंगरिंग एक साथ कर रहे हैं, तो बैक्टीरियल इंफेक्शन के फैलने से बचने के लिए अपने हाथों धोना न भूलें।
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महिलाएं भी रखें थोड़ा ख्याल
सब महिलाएं ओरल सेक्स के समान फिंगर सेक्स में भी आरामदायक महसूस नहीं करती। अधिकतर महिलाएं अपनी योनि से निकलने वाले द्रव, उसकी बदबू और आकार आदि को लेकर बहुत शर्म महसूस करती हैं और फिंगर सेक्स का पूरा मज़ा नहीं ले पाती। ऐसे में उन्हें यह समझना आवश्यक है कि यह सब सामान्य है। आप केवल पार्टनर और इन पलों की तरफ ध्यान दें और इन खास अंगों की साफ-सफाई रखें।
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*जिन लोगों को ये तीन सेक्स समस्यायें हों,*
*1 – लिंग का , छोटा ,पतला होना या टेढ़ा होना ।*
*2 – हस्तमैथुन की वजह से लिंग का आकार छोटा रह जाना ।*
*3 – सेक्स करते वक्त, लिंग में कड़ापन ना आना, या फिर कड़ापन आते ही तुरन्त ढीला हो जाना तथा ,,*
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