आयुर्वेदिक टिप्स डायबिटीज इन छोटे सुधारों से डायबिटीज रोगियों को मिलेगी बड़ी राहत

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आसान शब्दों में कहा जाए तो मधुमेह व्यक्ति के खून और पेशाब में शर्करा की मात्रा का बढ़ जाना है। ऐसा शरीर में इंसुलिन नामक हार्मोन की प्रक्रिया में गड़बड़ी आने से होता है। हम जो भी खाते हैं, उससे मिले ग्लूकोज को ऊर्जा में बदलने का काम इंसुलिन का होता है। साथ ही रक्त में शुगर के स्तर को नियंत्रित रखने में भी इसकी खासी भूमिका होती है। मधुमेह के मुख्य प्रकार टाइप -1 डायबिटीज : यह खासतौर पर बच्चों को होता है। इस स्थिति में पेनक्रियाज की बी-कोशिकाएं, इंसुलिन बनाने में असमर्थ हो जाती हैं। ऐसे में रोगियों को बाहर से इंसुलिन दिया जाता है, जिसे किसी रूप में चिकित्सक की सलाह के बिना बंद नहीं करना चाहिए। इससे रोगी किटोएसिडोसिस की स्थिति में जा सकते हैं जो एक गंभीर स्थिति है। मधुमेह के बढ़ते मामलों के कारण भारत को मुधमेह की राजधानी कहा जाने लगा है। मधुमेह से बड़े स्तर पर जूझ रहे पहले तीन देशों में से एक भारत भी है। मधुमेह को पूरी तरह खत्म करना कठिन है, लेकिन जीवनशैली में जरूरी सुधार करके शरीर की इंसुलिन क्षमता को ठीक रखा जा सकता है।

टाइप-2 डायबिटीज : टाइप-2 डायबिटीज की समस्या आम है। इसमें रोगी में इंसुलिन के प्रति संवेदनशीलता कम हो जाती है। इसकी अहम वजहों में तनाव और खराब जीवनशैली शामिल हैं। जेस्टेशनल डायबिटीज (गर्भावस्था में डायबिटीज ) : गर्भावस्था के दौरान महिलाओं के शरीर में कुछ हार्मोन बढ़ जाते हैं। उन हार्मोन के कारण इंसुलिन की संवेदनशीलता कम हो जाती है जिससे मधुमेह की आशंका बढ़ जाती है।

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अधिकतर गर्भवती महिलाओं में प्रसव के बाद मधुमेह की समस्या ठीक हो जाती है। यदि छह सप्ताह बाद भी खून में शर्करा का स्तर सामान्य नहीं होता तो ऐसी महिलाओं में टाइप -2 डायबिटीज की समस्या हो जाती है। मधुमेह के लक्षण ’ बार-बार प्यास का अनुभव होना ’ पेशाब ज्यादा आना ’ भूख अधिक लगना। मधुमेह रोगी खून में मौजूद शर्करा का इस्तेमाल शारीरिक गतिविधियों में नहीं कर पाते।

इससे हमेशा ऊर्जा की कमी व थकावट महसूस होती है। बार-बार भूख लगती है। ऐसा शरीर में इंसुलिन बिल्कुल नहीं होने या शरीर की इंसुलिन ग्रहण क्षमता में कमी आने के कारण होता है। ’ अचानक वजन कम हो जाना। चूंकि पेशाब के जरिये शर्करा शरीर से बाहर निकल जाती है और ऊतकों को पूरा पोषण नहीं मिल पाता, इससे शरीर का वजन घटने लगता है। यौन संबंधों में अरुचि, मूत्र संक्रमण, हाथ व पैर में सुन्नपन, धुंधला दिखना आदि लक्षण भी दिखते हैं। मधुमेह से होने वाली समस्याएं डायबिटिक रेटिनोपैथी : लगातार मधुमेह के बढ़े रहने से आंख के रेटिना की धमनियों में क्षति होने लगती है। समय पर चिकित्सा न हो तो दृष्टिजा भी सकती है। डायबिटिक न्यूरोपैथी : मधुमेह के रोगियों में रक्त शर्करा का लगातार बढ़ना शरीर के नर्वस सिस्टम पर बुरा असर डालता है। इससे हाथ व पैरों में सुन्नपन रहता है। कईबार रोगियों को चोट का एहसास तक नहीं होता और जख्म बढ़ जाता है।

डायबिटिक नेफ्रोपैथी : लगातार रक्त शर्करा का बढ़ना गुर्दे पर भी असर डालता है। इस वजह से पेशाब में प्रोटीन की मात्रा बढ़ जाती है। मधुमेह रोगियों को शुगर के साथ माइक्रोएल्ब्युमिन की जांच भी कराते रहनी चाहिए। यदि प्रोटीन या एल्ब्युमिन की उपस्थिति है तो चिकित्सक से जरूर मिलें। डायबिटिक फुट/गैंगरीन पैर शरीर में दिल से सबसे ज्यादा दूरी पर होते हैं, इस कारण खून का संचार जल्दी प्रभावित होता है। मधुमेह की स्थिति में पैर के कोमल ऊतकों व हड्डियों में संक्रमण की आशंका बढ़ जाती है, जिससे पैर में आसानी से ठीक न होने वाला अल्सर हो जाता है। इसे डायबिटिक फुट कहते हैं। मधुमेह रोगियों को जरा भी चोट लगने पर वह बड़ा रूप ले सकती है। कभी-कभी यह गैंगरीन का रूप ले लेता है, जिसमें कई बार पैर का कुछहिस्सा काटना भी पड़ जाता है। इससे बचने के लिए रक्त शर्करा को नियंत्रित रखना जरूरी है। पैर की साफ-सफाई का ध्यान रखना चाहिए। मधुमेह रोगियों को आग पर हाथ व पैर तापने से भी बचना चाहिए। कई मधुमेह रोगी डायबिटिक न्यूरोपैथी से ग्रसित होते हैं, जिससे उनके पैरों में संवेदनशीलता कम हो सकती है। ऐसे में कोईघाव डायबिटिक फुट का रूप ले सकता है। मधुमेह रोगियों को नंगे पैर सैर भी नहीं करनी चाहिए।

 

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