कब्ज के कारण और आयुर्वेदिक उपचार

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कब्ज, मल त्याग की धीमी प्रक्रिया से भी उप्पर के स्तर में आता है। आयुर्वेद के अनुसार, कब्ज असंतुलित वात एवं मल वाहिनियों में उत्पन्न अवरोधों का संकेत है। डिप्रेशन एवं गठिया के रोगी में कब्ज के लक्षण आमतौर पर देखने को मिलते हैं। माइग्रेन के रोगी को भी कब्ज हो सकती है। कुछ केसों में देखा गया है कि रोगी को कब्ज से राहत मिलने पर उसके माइग्रेन एवं अवसाद के रोग में भी राहत मिल जाती है।

हालांकि कब्ज एक साधारण समस्या है, किन्तु यदि समय रहते उचित चिकित्सा न मिले अथवा इसकी उपेक्षा कि जाए तो यह एक विकराल समस्या का रूप धारण कर सकता है। इसलिए इसे तत्काल ही गंभीरता से लेने कि आवश्यकता रहती है।

कब्ज के साथ वास्तविक समस्या :- कुछ लोगों का मानना है कि कब्ज होने पर, आंतों के अंदर अन्य गन्दगी भी फंस जाती है। उन अपशिष्ट पदार्थों के कारण कई प्रकार की जटिलताएं आ जाती है | किन्तु वास्तव में इसके पीछे का कारण बहुत गहरा होता है | बड़ी आंत को एक निश्चित समय तक ही मल को स्टोर करने के लिए डिज़ाइन किया गया है। इसलिए, कुछ और अधिक समय के लिए मल को रोककर रखना इसके लिए कोई बड़ी बात नहीं है | वास्तविक समस्या यह है कि लंबे समय के लिए मल का बाहर न निकलना यकृत, मस्तिष्क, प्रतिरक्षा प्रणाली आदि के लिए गलत संकेत भेजती है, जो माइग्रेन के साथ साथ अन्य जटिलताओं को भी जन्म देती है।

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कब्ज के लिए उत्तरदायी कारक :- मल के मुक्त प्रवाह / निष्कासन के लिए वात उत्तरदायी कारक है। जब वात की कार्यप्रणाली प्रभावित होती है, तो इसके परिणाम स्वरूप कब्ज की समस्या उत्पन्न होती है।

कब्ज के कारण :-

♦   शुष्क, हल्के, गरिष्ठ गुणों वाले भोजन का सेवन |

♦   कोई भी भोजन जो मुंह के सूखेपन, शरीर में हल्कापन और त्वचा में खुरदरापन का कारण बनता है।

♦   तीक्ष्ण, कसैले एवं नमक युक्त खाद्य पदार्थों के अत्यधिक खपत |

♦   देर रात तक जागना |

♦   पानी का कम सेवन |

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♦   अधिक धूप में काम करना |

♦   लंबी पैदल यात्रा करना |

♦   अत्यधिक लंबे समय के लिए एक ही स्थान पर बैठे रहना |

♦   रेशेयुक्त आहार का कम सेवन |

♦   पार्किंसंस रोग जैसे तंत्रिका संबंधी विकार |

♦   एण्टासिड्स का अत्यधिक उपयोग |

♦   डिप्रेशन

♦   गठिया रोग |

♦   गर्भावस्था – भ्रूण आंतों पर दबाव डालते हैं, जिससे मल की चाल में कमी होती है |

♦   पेट का कैंसर

♦   आंत में अवरोध – आंतों का उलझ जाना |

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आयुर्वेद के अनुसार कब्ज के रोग विज्ञान :- वात के असंतुलन कारकों के कारण, वात अत्यधिक बढ़ जाता है जिस कारण यह बड़ी आंत के निचले हिस्से में अवरुद्ध हो जाता है, जिसके परिणामस्वरूप कब्ज होती है। रोगी द्वारा दर्द के साथ पूर्ण कब्ज या कठोर मल की शिकायत की जाती है।

कब्ज की जटिलताएं :- अगर शिकायत के कारकों को लंबे समय तक अनदेखा या उपेक्षित किया जाता है तो आगे चलकर यह बवासीर, फ़िशर,पेट के गैसीय अवयव, सूजन, कड़ापन, पत्थर की तरह कठोर मल, सिरदर्द, यकृत विकार और विभिन्न चयापचय ( मेटाबोलिक ) के साथ-साथ आंत रोग भी उत्पन्न हो सकते हैं। कुछ व्यक्तियों में पीठ दर्द, रिवर्स पेरिस्टलस आदि के लक्षण भी उभर आते हैं।

कब्ज को रोकने के लिए युक्तियाँ :-

♦   अपने आहार में फाइबर शामिल करें, बहुत सारे फल, सब्जियां, फलियां, मक्का (चोकर), फूलगोभी, किशमिश, गोभी, बेरी, हरी पत्तेदार सब्जियां, अजवाइन, सेम, अमरूद, अंजीर, अलसी का बीज, पालक, नारंगी, मशरूम।

♦   अपने लंच या डिनर में फल और सब्जी के मिश्रित सलाद का सेवन सुनिश्चित करें |।

♦   पूरे दिन पानी की अच्छी मात्रा में पिएं।

♦   ध्यान दें कि, एक सामान्य व्यक्ति में, आयुर्वेद केवल प्यास लगने पर ही पानी पीने की सलाह देता है लेकिन बीमारी की स्थिति में, जैसे कि कब्ज, पानी की अच्छी मात्रा लें |

♦   पानी के साथ साथ फाइबर समृद्ध आहार का अवश्य सेवन करें इससे आंत नरम रहती हैं व कब्ज की रोक थाम होती है।

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♦   कॉफी और चाय के अधिक से बचें | कुछ लोगों को मल त्याग की इच्छा तब तक नहीं होती है जब तक की वे कॉफी या चाय न पी लें। यह सलाह ऐसे लोगों के लिए लागू नहीं है।

♦   दूध और डेयरी उत्पाद : यदि आपको लगता है कि कब्ज है, तो दूध और डेयरी उत्पादों का उपयोग कम से कम करें।

♦   व्यायाम : लंबी अवधि के लिए किसी एक ही स्थान पर न बैठें। दिन में कम से कम 15 – 20 मिनट के लिए पैदल चलें / जॉगिंग करें |

♦   मल को रोके नहीं : आयुर्वेद के अनुसार, मल त्याग की इच्छा एक प्राकृतिक संकेत है | इस संकेत का आभास होते ही तत्काल इसका त्याग करें क्यूंकि बार बार अधिक समय तक रोकने पर नियमित रूप से कब्ज हो जाती है।

♦   अत्यधिक मसालेदार भोजन, गरिष्ठ गैर शाकाहारी और तला हुआ भोजन खाने से बचें |

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