मुलेठी के बारे में जानकारी – आयुर्वेदिक ग्रंथों में खासकर मध्यकालीन ग्रंथों में इसे आकारकरभ नाम से वर्णित किया गया है जिसे हिंदी में मुलेठी भी कहा जाता है दांतों एवं मसूड़े से सम्बंधित समस्याओं को दूर करने हेतु सदियों से किया जाता रहा है|
इस पौधे के सबसे अधिक महत्वपूर्ण भाग इसके फूल एवं जडें हैं।जब इसके फूलों एवं पत्तियों को चबाया जाता है तो यह एक प्रकार से दाँतों एवं मसूड़ों में सुन्नता उत्पन्न करता है। इसके फूल इसके सबसे महत्वपूर्ण भाग हैं।
जानिए विभिन्न रोगों में मुलेठी से उपचार
सफेद दाग (श्वेतकुष्ठ) में मुलेठी :- मुलेठी के पत्तों का रस निकालकर श्वेत कुष्ठ पर लगाने से कुष्ठ थोड़े समय में ही अच्छा हो जाता है।
गैस्ट्रिक जलन: इसकी बहुत ज्यादा खुराक लेने से पेट में दर्द, सिरदर्द, मतली, त्वचा पर चकत्ते, खुजली, हिचकी और दस्त हो सकते हैं।
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सिर के दर्द में मुलेठी:- यदि सर्दी के कारण से सिर में दर्द हो तो मुलेठी को मुंह में दांतों के नीचे दबायें रखें। इससे शीघ्र लाभ होगा। बादाम के हलवे के साथ आधा ग्राम मुलेठी का चूर्ण सुबह-शाम सेवन करने से लगातार एक समान बने रहने वाला सिर दर्द ठीक हो जाता है | मुलेठी को जल में पीसकर गर्म करके माथे पर लेप करने से सिर का दर्द ठीक हो जाता है।
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दांत रोग में मुलेठी:- मुलेठी को सिरके में घिसकर दुखते दांत पर रखकर दबाने से दर्द में लाभ होता है। मुलेठी और कपूर को बराबर की मात्रा में पीसकर नियमित रूप से सुबह-शाम मंजन करते रहने से सभी प्रकार के दांतों की पीड़ा दूर हो जाती है।मुलेठी, माजूफल, नागरमोथा, फूली हुई फिटकिरी, कालीमिर्च, सेंधानमक बराबर की मात्रा में मिलाकर पीस लें। इससे नियमित मंजन करते रहने से दांत और मसूढ़ों के समस्त विकार दूर होकर दुर्गंध मिट जाती है।
पेट के रोग में मुलेठी :- छोटी पीपल और मुलेठी की जड़ का चूर्ण बराबर की मात्रा में पीसकर आधा चम्मच शहद के साथ सुबह-शाम, भोजन के बाद सेवन करते रहने से पेट सम्बंधी अनेक रोग दूर हो जाते है।
दमा (श्वास) होने पर में मुलेठी :- मुलेठी के कपड़छन चूर्ण को सूंघने से ‘वास का अवरोध दूर होता है। लगभग 20 ग्राम मुलेठी को 200 मिलीलीटर जल में उबालकर काढ़ा बनायें और जब यह काढ़ा 50 मिलीलीटर की मात्रा में शेष रह जाये तो इसमें शहद मिलाकर अस्थमा के रोगी को सेवन कराने से अस्थमा रोग ठीक हो जाता है।
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हिचकी में मुलेठी:- एक ग्राम मुलेठी का चूर्ण 1 चम्मच शहद के साथ चटाएं। हिचकी बंद हो जायगी |
बाजीकरण में मुलेठी:- मुलेठी, सफेद मूसली और असगन्ध सभी को बराबर मात्रा में लेकर पीस लें, इसे 1-1 चम्मच की मात्रा में सुबह-शाम एक कप दूध के साथ नियमित रूप से लें।
(डॉ. नुस्खे )
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गर्भनिरोध में मुलेठी:- मुलेठी को दूध में पीसकर रूई लगाकर तीन दिनों तक योनि में लगातार रखने से 1 महीने तक गर्भ नहीं ठहरता है।
दिमाग को तेज करने के लिए में मुलेठी:- मुलेठी और ब्राह्मी समान मात्रा में लेकर चूर्ण बनायें, इसको आधा चम्मच नियमित सेवन करने से बुद्धि तेज होती है
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तुतलापन, हकलाहट में अकरकरा:- मुलेठी और कालीमिर्च बराबर लेकर पीस लें। इसकी एक ग्राम की मात्रा को शहद में मिलाकर सुबह-शाम जीभ पर 4-6 हफ्ते नियमित प्रयोग करने से पूरा लाभ मिलेगा।मुलेठी 12 ग्राम, तेजपात 12 ग्राम तथा कालीमिर्च 6 ग्राम पीसकर रखें। 1 चुटकी चूर्ण प्रतिदिन सुबह-शाम जीभ पर रखकर जीभ को मलें। इससे जीभ के मोटापे के कारण उत्पन्न तुतलापन दूर होता है।
जीभ के विकार के कारण हकलापन में अकरकरा :- मुलेठी की जड़ के चूर्ण को कालीमिर्च व शहद के साथ 1 ग्राम की मात्रा में मिलाकर जीभ पर मालिश करने से जीभ का सूखापन और जड़ता दूर होकर हकलाना या तोतलापन कम होता है। इसे 4-6 हफ्ते प्रयोग करें।
गले का रोग में अकरकरा :- मुलेठी चूर्ण की लगभग 1 ग्राम का चौथाई भाग से लगभग आधा ग्राम की मात्रा में फंकी लेने से बच्चों और गायकों (सिंगर) का स्वर सुरीला हो जाता है। तालू, दांत और गले के रोगों में इसके कुल्ले करने से बहुत लाभ होता है।
मुख दुर्गन्ध (मुंह से बदबू आने पर) में मुलेठी :- मुलेठी , माजूफल, नागरमोथा, भुनी हुई फिटकरी, कालीमिर्च, सेंधानमक सबको बराबर मिलाकर बारीक पीस लें। इस मिश्रण से प्रतिदिन मंजन करने से दांत और मसूढ़ों के सभी विकार दूर होकर दुर्गन्ध मिट जाती है।
हृदय रोग में मुलेठी :- अर्जुन की छाल और मुलेठी का चूर्ण दोनों को बराबर मिलाकर पीसकर दिन में सुबह और शाम आधा-आधा चम्मच की मात्रा में खाने से घबराहट, हृदय की धड़कन, पीड़ा, कम्पन और कमजोरी में लाभ होता है। कुलंजन, सोंठ और मुलेठी की लगभग 1 ग्राम का चौथाई भाग मात्रा को 400 मिलीलीटर पानी में उबालें, जब यह 100 मिलीमीटर की मात्रा में शेष बचे तो उतारकर ठंडा कर लें। फिर इसे पीने से हृदय रोग मिटता है।
ज्वर (बुखार) होने पर मुलेठी :- मुलेठी की जड़ के चूर्ण को जैतून के तेल में पकाकर मालिश करने से पसीना आकर ज्वर उतर जाता है। अकरकरा 10 ग्राम को 200 मिलीलीटर पानी में काढ़ा बना लें। इस काढ़े में 5 मिलीलीटर अदरक का रस मिलाकर लेने से सन्निपात ज्वर में लाभ मिलता है।
मुलेठी 10 ग्राम और चिरायता 10 ग्राम लेकर कूटकर पीसकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण में से 3 ग्राम चूर्ण पानी के साथ लेने से बुखार समाप्त होता है।
1 ग्राम मुलेठी मूल (जड़), 5 ग्राम गिलोय तथा 3 से 5 पत्ते तुलसी को मिलाकर काढ़ा बनाकर दिन में 2 से 3 बार देने से जीर्ण ज्वर, बार बार होने वाला बुखार, व् सर्दी लगकर आने वाला बुखार में अत्यंत लाभ होता है.
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खांसी में मुलेठी:- मुलेठी का 100 मिलीलीटर का काढ़ा बनाकर सुबह-शाम पीने से पुरानी खांसी मिटती है। मुलेठी के चूर्ण को 3-4 ग्राम की मात्रा में सेवन करने से यह बलपूर्वक दस्त के रास्ते कफ को बाहर निकाल देती है।
शरीर की शून्यता और आलस्य होने पर मुलेठी :- मुलेठी के 1 ग्राम चूर्ण को 2-3 पीस लौंग के साथ सेवन करने से शरीर की शून्यता और इसकी जड़ के 100 मिलीलीटर काढ़े पीने से आलस्य मिटता है।
गृध्रसी (सायटिका) में मुलेठी :- मुलेठी की जड़ को अखरोट के तेल में मिलाकर मालिश करने से गृध्रसी साइटिका मिटती है।
अर्दित (मुंह टेढ़ा होना) होने में मुलेठी:- उशवे के साथ मुलेठी का 100 मिलीलीटर काढ़ा मिलाकर पिलाने से अर्दित मिटता है।मुलेठी का चूर्ण और राई के चूर्ण को शहद में मिलाकर जिहृवा पर लेप करने से अर्धांगवात मिटती है।
मुलेठी चूर्ण और राई के चूर्ण को बारीक पीसकर, मिलाकर प्रतिदिन मालिश करने से अर्धांगवात में लाभ होता है, यदि शरीर में शुष्कता ज्यादा हो या बाल झड़ते हो, तब थोडा राई का तेल भी मिलाकर मालिश करें, यह अत्यंत लाभकारी प्रयोग है.
मुलेठी मूल को धीरे धीरे चबाने से आर्दित में लाभ होता है, 1 से २ ग्राम सूक्षम चूर्ण को शहद में मिलाकर या गर्म पानी में सुबह शाम लेने से आर्दित में लाभ होता है.
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अपस्मार में मुलेठी के प्रयोग – मुलेठी के फूल या जड़ को सिरके में पीसकर मधु मिलाकर 5 से 10 मिली की मात्रा में चाटने से मिर्गी का वेग रुकता है,
ब्राह्मी के साथ मुलेठी की जड़ का काढ़ा बनाकर पिलाने से मिर्गी में लाभ होता है. मिर्गी में मोरक्को वाली मुलेठी ज्यादा कार्य करती है.
पक्षाघात (लकवा) में मुलेठी : मुलेठी की सूखी डण्डी महुए के तेल में मिलाकर मालिश करने से लकवा दूर होता है।मुलेठी की जड़ को बारीक पीसकर महुए के तेल में मिलाकर मालिश करने से पक्षाघात में लाभ होता है।मुलेठी की जड़ का चूर्ण लगभग आधा ग्राम की मात्रा में शहद के साथ सुबह-शाम चाटने से पक्षाघात (लकवा) में लाभ होता है।
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