बचपन में डर लगने पर हमें अक्सर ये बोला जाता था कि, कैसे लड़के हो? या फिर, लड़के होकर भी डरते हो? ये छोटी सी बात हमारे मन में इतना गहरा असर करती है कि पूरी जिंदगी वो लड़का सिर्फ अपनी असुरक्षा की भावना को छुपाए फिरता रहता है।
वो कभी किसी से नहीं कह पाता कि, ‘हां, मैं एक लड़का हूं और मुझे डर लगता है।’ डरना बुरी बात नहीं है। बुरी बात है, उसे लोगों से या अपने करीबियों से कह न पाना। मन की गहराई में छिपी हुई बात से खतरनाक इस दुनिया में कुछ भी नहीं है।
आपके मन का वहम या कोई भी छोटी सी बात, कब आपके सामने पहाड़ की तरह खड़ी हो जाएगी, आप नहीं जानते हैं। इसलिए अगर डर लगता है तो डटकर उसका सामना कीजिए। और इसमें शर्मिंदगी की कोई बात नहीं है।
दलेर मेंहदी जैसे लोग भी निक्टोफोबिया के शिकार हैं। यानि कि, उन्हें अंधेरे में जाने से डर लगता है। पैराग्लाइडिंग वाले भाई को ज्यादा ऊंचाई से डर लगता था। कई लोगों को चूहों और मकड़ियों से डर लगता है। यानि कि आप इस दुनिया में अकेले शख्स नहीं हैं जिसे डर लगता है तो सामान्य रहिए।
2. अपना स्पेस बनाए रखें – आप एक रिलेशनशिप में हैं और पार्टनर आपकी हर सेकेंड की एक्टिविटी के बारे में जानना चाहती है। यहां तक कि, आप क्या पहनते हैं, क्या खाते हैं, किस कलर के शर्ट और जूते पहनेंगे, ये भी वही तय करती है। आप अपने दोस्त भी खुद नहीं चुन सकते, उन्हें भी वही चुनेगी। तो, आप गलत जगह हैं।
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असल में, इन चीजों से ऊबकर आजादी चाहना कोई गलती नहीं है। हर इंसान का अपना स्पेस होना चाहिए। जिसमें अगर कोई एंट्री चाहता है तो, उसे आपकी इजाजत लेनी पड़े। ऐसा स्पेस मेंटेन कीजिए।
अगर आप ऐसी चाहत रखते हैं और इस टाइप के स्पेस को बिल्ड करने की कोशिश कर रहे हैं तो आप एकदम सही हैं। किसी को भी ये अधिकार नहीं होना चाहिए कि आपके रिजर्व स्पेस में एंट्री करे।
3. किसी को याद करना – कई बार लोग हमारी जिंदगी से बहुत दूर चले जाते हैं। या फिर, लाइफ में ब्रेकअप जैसे मोमेंट आते हैं। ये लम्हें जिंदगी को झकझोर कर रख देते हैं। इनसे बाहर निकलने के लिए भी इंसान को काफी मेहनत करनी पड़ती है।
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ऐसे में किसी को बहुत ज्यादा याद करने को कमजोर समझना गलत है। ये उस इंसान या चीज के प्रति आपका लगाव और समर्पण भी हो सकता है। इस समर्पण से किसी इंसान का जुड़ाव ही उसके मन में इंसानियत की भावना का विकास करता है।
अगर इसके लिए कोई आपको कमजोर समझता है तो, ये उसकी भूल है। आप कमजोर नहीं हैं। बल्कि आपके अंदर इंसानियत की रोशनी सामने वाले से कहीं ज्यादा बुलंदी से रोशन है। इसलिए आनंद मनाएं, दुख का शोक नहीं।
4. ईर्ष्यालु होना – ये मानव का प्राकृतिक स्वभाव है। किसी की उन्नति को देखकर लोगों के मन में अक्सर ईर्ष्या की भावना का विकास होता है। ये बेहद स्वाभाविक प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया के परिणामस्वरूप ही लोगों के मन में प्रतिस्पर्धा की भावना विकसित होती है। जो बहुत ही अच्छी बात है।
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हर इंसान अपने मन में ग्रोथ के लिए एक आइडल की कल्पना करता है। उसे फॉलो करता है और उसकी सलाह पर अमल भी करता है। पूरे मनोयोग से कोशिश के बाद भी अगर कोई आपसे तेज आगे बढ़ रहा है तो जाहिर सी बात है कि, आपके प्रयासों में कमी है।
अगर आपके मन में प्रतिस्पर्धा की भावना ही न होगी तो आगे बढ़ने का सपना कभी पूरा नहीं हो सकेगा। इसलिए, अगर आपके मन में ईर्ष्या जैसी भावनाएं हैं तो इसे सकारात्मक तरीके से ही ले और आगे बढ़ने की कोशिश करें।
5. किसी से मदद मांगना – कई बार इंसान की जिंदगी में ऐसे पल आते हैं, जब उसे किसी से मदद मांगनी पड़ती है। इसमें संकोच नहीं होना चाहिए। हो सकता है कि, किसी से ली गई मदद आपकी जिंदगी को नए सिरे से स्टार्ट करने में मदद करे।
सामने वाला ज्यादा से ज्यादा मना ही तो करेगा। इसे अपनी प्रतिष्ठा का मुद्दा न बनाएं। परिस्थितियों पर विचार करें और उसके अनुसार ही फैसला करें। कई बार लोग छोटी सी मदद से ही आगे बढ़ने के नए रास्ते तलाश लेते हैं। इसलिए, अगर आपकी जिंदगी में मदद मांगने का मौका आए तो आगे बढ़ें और संकोच न करें।
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